पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी समसामयिकी 2 (24-June-2021)
पिग्मी हॉग
(Pygmy Hog)

Posted on June 24th, 2021 | Create PDF File

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हाल ही में असम के मानस राष्ट्रीय उद्यान में विश्व के सबसे दुर्लभ और सबसे छोटे जंगली सूअर पिग्मी हॉग (Pygmy Hogs) को छोड़ा गया था।

 

यह एक वर्ष में पिग्मी हॉग कंजर्वेशन प्रोग्राम (Pygmy Hog Conservation Programme- PHCP) के तहत जंगल में फिर से शुरू किया गया दूसरा बैच है।

 

पिग्मी हॉग कंजर्वेशन प्रोग्राम (PHCP):

पिग्मी हॉग को सहभागी प्रयासों द्वारा लगभग विलुप्त होने की कगार से बचाया गया था और अब संपूर्ण क्षेत्र में इसकी संख्या में वृद्धि हो रही है।

 

PHCP, यूनाईटेड किंगडम के ड्यूरेल वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन ट्रस्ट (Durrell Wildlife Conservation Trust), असम वन विभाग, वाइल्ड पिग स्पेशलिस्ट ग्रुप ऑफ इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) तथा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के बीच एक सहयोग है।

 

इसे वर्तमान में गैर सरकारी संगठनों, आरण्यक और इकोसिस्टम्स इंडिया द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।

 

पिग्मी हॉग के संरक्षण की शुरुआत प्रसिद्ध प्रकृतिवादी गेराल्ड ड्यूरेल और उनके ट्रस्ट द्वारा वर्ष 1971 में की गई थी।

 

प्रजनन कार्यक्रम शुरू करने के लिये वर्ष 1996 में मानस राष्ट्रीय उद्यान के बांसबारी क्षेत्र से छह हॉग को पकड़ा गया था।

 

वर्ष 2008 में सोनाई-रूपाई वन्यजीव अभयारण्य, ओरंग राष्ट्रीय उद्यान और बोर्नडी वन्यजीव अभयारण्य  (ये सभी असम में हैं) के साथ पुनर्स्थापना कार्यक्रम शुरू हुआ।

 

वर्ष 2025 तक PHCP ने मानस में 60 पिग्मी हॉग छोड़ने की योजना बनाई है।

 

 

यह उन गिने-चुने स्तनधारियों में से एक है जो एक 'छत' के साथ अपना घर या घोंसला बनाते हैं।

 

यह एक संकेतक प्रजाति भी है। इनकी उपस्थिति इसके प्राथमिक आवास, क्षेत्र, गीले घास के मैदानों के स्वास्थ्य की स्थिति को दर्शाती है।

 

आवास:

ये आर्द्र घास के मैदान में पाए जाते हैं।

 

पूर्व में हिमालय की तलहटी- नेपाल के तराई क्षेत्रों और बंगाल के दुअर क्षेत्रों से होते हुए उत्तर प्रदेश से असम तक- में लंबे और गीले घास के मैदानों की एक संकीर्ण पट्टी में पाए जाते थे। वर्तमान में ये मुख्य रूप से असम में पाए जाते हैं।

 

संरक्षण स्थिति:

अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की रेड लिस्ट: संकटग्रस्त

 

वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES): परिशिष्ट I

 

भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची-I

 

ये पर्यावास (घास का मैदान) क्षति और गिरावट तथा अवैध शिकार के कारण संकटग्रस्त हैं।