प्रतियोगी परीक्षा के छात्रों के सपनों की कविता द्वारा आकाश महेरे (Poem of dreams of competitive examination students by Aakash Mahere)

Posted on December 20th, 2019 | Create PDF File

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घर से निकला था कुछ सपने लेकर,

जो अब तक पूरे न हो पाये हैं

हाँ,मुझे निकले कई साल बीत गये

पर सपने अब तक न पास आयें हैं।।

 

हर दिन उस मेहनत के मंजर से गुजरता हूँ, 

जिनसे इनको हकीकत बना सकूँ में

 

पा सकूँ इनसे वो ख़ुशी जिनको,

हम उम्मीदों में देखते आयें हैं  

 

हाँ मुझे निकले कई साल बीत गये, पर सपने अभी तक न पास आयें हैं  

 

सपनों की ख्वाहिशें बहुत टेढ़ी निकली यारों, हम बहुत जल्द पूरे होंगे

 

कहे कर ये साल-दर साल हमें, अधूरा करते आयें हैं  

 

हाँ मुझे निकले कई साल बीत गये...........................

 

होंगे एक दिन ये सपने भी पूरे ,मेहनत  किसी की बेकार नहीं जाएंगी 

 

हाँ कुछ बड़े सपने हैं इस लिए बड़ी कीमत चुकाने आयें हैं  

 

हाँ मुझे निकले कई साल बीत गए, पर सपने अब तक न पास आयें हैं। 

 

लेखक - आकाश महेरे ✍