राजव्यवस्था समसामियिकी 1 (21-Feb-2021)
राष्ट्रपति की क्षमादान शक्तियाँ
(Pardoning powers of President)

Posted on February 21st, 2021 | Create PDF File

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उत्तर प्रदेश के अमरोहा की रहने वाली, मृत्युदंड की सजायाफ्ता शबनम के 12 साल के बेटे ने राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद से अपनी मां को “माफ” करने की अपील की है।शबनम, मृत्युदंड से बचने के लिए लगभग सभी कानूनी तरीकों को अपना चुकी है, और यदि उसे फांसी दी जाती है, तो वह स्वतंत्र भारत की पहली महिला होगी जिसे किसी अपराध के लिए फांसी दी जाएगी।

(कृपया ध्यान दें, भारत में केवल एक जेल, मथुरा में हैं जहाँ किसी महिला अपराधी को फांसी देने के प्रावधान हैं)।

 

अनुच्छेद 72 के अंतर्गत राष्ट्रपति की क्षमादान शक्तियाँ:

 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 में कहा गया है कि, राष्ट्रपति को, किसी अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराए गए किसी व्यक्ति के दंड को क्षमा, उसका प्रविलंबन (Reprieve), विराम (Respite) या परिहार (Remission) करने की अथवा दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण (Commutation) करने की शक्ति होगी।

 

क्षमा (Pardon): क्षमादान के अंतर्गत, अपराधी को पूर्णतयः सभी सजाओं और दंडों तथा निरर्हताओं से मुक्त कर दिया जाता है, और उस व्यक्ति को इस तरह का दर्जा दिया जाता है, जैसे उसने कभी अपराध किया ही न हो।

 

लघुकरण (Commutation)– लघुकरण का तात्पर्य, किसी एक वस्तु अथवा विषय को दूसरे के साथ बदलना। सरल शब्दों में, सज़ा की प्रकृति में परिवर्तन करना। उदाहरण के लिए, कठोर कारावास को साधारण कारावास में बदलना।


प्रविलंबन (Reprieve): प्रविलंबन का अर्थ है, मौत की सजा का अस्थायी निलंबन। उदाहरण के लिए- क्षमादान या लघुकरण की अपील के लिए मृत्युदंड की कार्यवाही को अस्थायी रूप से निलंबित करना।
विराम (Respite): विराम का अर्थ है, कुछ विशेष परिस्थितियों की वजह से सज़ा को कम करना। उदाहरण के लिए- महिला अपराधी की गर्भावस्था के कारण सजा में कमी।


परिहार (Remission): परिहार का तात्पर्य, सजा की प्रकृति को बदले बगैर सजा में कमी, जैसे कि, एक साल की सजा को घटाकर छह महीने की सजा में परिवर्तन।


राष्ट्रपति की क्षमादान शक्तियाँ, राज्यपाल की क्षमादान शक्तियों की तुलना में अधिक व्यापक होती है, और यह निम्नलिखित दो प्रकारों से भिन्न है:

 

राष्ट्रपति की क्षमादान शक्तियाँ, सेना न्यायालय द्वारा दिए गई सजा अथवा दंडों (कोर्ट मार्शल) से संबंधित मामलों तक विस्तारित होती हैं, जबकि, अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल को ऐसी कोई शक्ति प्राप्त नहीं है।


राष्ट्रपति, मृत्युदंड से सबंधित सभी मामलों में क्षमा प्रदान कर सकता है, जबकि, राज्यपाल की क्षमादान शक्ति मृत्युदंड से सबंधित मामलों पर विस्तारित नहीं है।


क्षमादान शक्तियों का प्रयोग:

राष्ट्रपति द्वारा क्षमादान शक्ति का प्रयोग मंत्रिपरिषद की सलाह पर किया जाता है।संविधान में, राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल के ‘दया अधिकार क्षेत्र’ (mercy jurisdiction) से संबधित निर्णय की वैधता पर प्रश्न उठाने का कोई प्रावधान नहीं किया गया है।हालांकि, ईपुरु सुधाकर (Epuru Sudhakar) मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा, किसी भी मनमानी को रोकने के उद्देश्य से राष्ट्रपति और राज्यपालों की क्षमादान शक्तियों की न्यायिक समीक्षा का विकल्प दिया गया है।