91वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 (Ninety First Constitutional Amendment, 2003)

Posted on May 18th, 2022 | Create PDF File

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91वां संविधान संशोधन के माध्यम से संविधान के संशोधित प्रावधान-

 

इस संविधान संशोधन अधिनियम, द्वारा मंत्रिपरिषद के आकार को निश्चित कर दिया गया है। इसका उद्देश्य दोषियों को लोक पद धारण करने से रोकना और दल-बदल कानून को मजबूती प्रदान करता है-

 

1.केंद्रीय मंत्रिपरिषद में प्रधानमंत्री समेत मंत्रियों की अधिकतम संख्या लोकसभा की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी।

 

2.संसद के किसी भी सदन का सदस्य यदि दल-बदल के आधार पर सदस्यता निरर्हक करार दिया जाता है तो ऐसा सदस्य मंत्री होने पर मंत्री पद के लिए भी निरर्हक होगा।

 

3.राज्यों में मुख्यमंत्री समेत मंत्रियों की अधिकतम संख्या विधानसभा की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी किंतु राज्यों में मुख्यमंत्री समेत मंत्रियों की न्यूनतम संख्या 12 से कम नहीं होगी।

 

4.राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन का सदस्य यदि दल-बदल के आधार पर सदस्यता से निरर्हक करार दिया जाता है तो ऐसा सदस्य मंत्री होने पर मंत्री पद के लिए भी निरर्हक होगा।

 

5.संसद या राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन का सदस्य चाहे वह किसी भी दल से संबंधित हो यदि दलबदल के आधार पर सदस्यता से निरर्हक करार दिया जाता है तो ऐसा सदस्य किसी भी लाभप्रद राजनैतिक पद को धारित करने के लिए भी निरर्हक होगा। ऐसे पद से अभिप्राय है- (i) केंद्र या राज्य सरकार के अधीन कोई पद जहां उस पद के लिये लोक राजस्व से वेतन एवं अन्य सुविधाओं के लिये भुगतान किया जाता है, या (ii) केंद्र या राज्य सरकार के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नियंत्रणाधीन कोई पद जहां उस पद के लिये लोक राजस्व से वेतन एवं अन्य सुविधाओं के लिये भुगतान किया जाता है, सिवाए जहां वेतन या पारिश्रमिक क्षतिपूरक प्रकृति का हो।

 

6.दसवीं अनुसूची में वर्णित वह उपबंध, जिसके अनुसार यदि किसी दल के एक-तिहाई सदस्य दल-बदल करते हैं तो उन्हें अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता, इस उपबंध को समाप्त कर दिया गया है। इसका अर्थ है कि दोषियों को फूट के आधार पर कोई संरक्षण प्राप्त नहीं हैं।