शिक्षा समसामियिकी 1 (30-July-2020)
नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 (National Education Policy– 2020)

Posted on July 30th, 2020 | Create PDF File

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हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy– NEP) 2020 को स्वीकृति प्रदान की गयी है। यह 21वीं सदी की पहली शिक्षा नीति है तथा यह 34 साल पुरानी राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 1986 को प्रतिस्थापित करेगी।राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का उद्देश्य 21वीं सदी की आवश्यकताओं के अनुकूल स्कूल और कॉलेज की शिक्षा को अधिक समग्र, लचीला बनाते हुए भारत को एक ज्ञान आधारित जीवंत समाज तथा ज्ञान की वैश्विक महाशक्ति में बदलना और प्रत्येक छात्र में निहित अद्वितीय क्षमताओं को सामने लाना है।

 

प्रख्यात वैज्ञानिक, ISRO के पूर्व-प्रमुख, पद्म विभूषण डॉ के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे के लिए एक समिति का गठन किया गया था, जिसने दिसंबर 2018 में सरकार के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2019 का मसौदा सौंप दिया। मई 2019 में लोकसभा चुनाव के बाद इस मसौदे को जनता की राय हेतु सार्वजनिक किया गया था।

 

केंद्र तथा राज्यों द्वारा शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय को GDP के 6% तक बढ़ाया जायेगा।मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय किया जाएगा।

 

सीखने, मूल्यांकन करने, योजना बनाने, प्रशासन को बढ़ावा देने के लिए, प्रौद्योगिकी का उपयोग करने पर विचारों का मुक्त आदान-प्रदान करने हेतु एक मंच प्रदान करने के लिए एक स्वायत्त निकाय, ‘राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी मंच’ (National Educational Technology Forum– NETF) का निर्माण किया जाएगा।डिजिटल शिक्षा संसाधनों को विकसित करने हेतु एक प्रौद्योगिकी यूनिट (Technology Unit) का गठन किया जायेगा। यह नयी यूनिट, डिजिटल अवसंरचना, सामग्री तथा क्षमता-निर्माण को समन्वित करेगी।



वर्ष 2030 तक, शिक्षण कार्य करने के लिए न्यूनतम योग्यता 4 वर्षीय इंटीग्रेटेड बीएड डिग्री की जायेगी।शिक्षा में डिजिटल-विभाजन को पाटने में सहायता करने के लिए शिक्षकों को भारतीय स्थितियों के अनुकूल ऑनलाइन शैक्षणिक विधियों का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा।



3 वर्ष 6 वर्ष की आयु तक प्री-प्राइमरी शिक्षा को वर्ष 2025 तक सार्वभौमिक किया जायेगा।वर्ष 2030 तक स्कूली शिक्षा में 100 नामाकंन के साथ पूर्व-विद्यालय से माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा के सार्वभौमिकरण का लक्ष्य।स्कूलों में छठे ग्रेड से ही व्यावसायिक शिक्षा शुरू हो जाएगी और इसमें इंटर्नशिप शामिल होगी।कक्षा 5 तक बच्चे की मातृभाषा को शिक्षा के माध्यम के रूप में उपयोग किया जाएगा।
एक नयी पाठयक्रम संरचना लागू की जायेगी, जिसमें तीन साल की आंगनवाड़ी / प्री स्कूलिंग को सम्मिलित किया जायेगा।‘बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान पर एक राष्ट्रीय मिशन’ की स्थापना की जायेगी, जिसके अंतर्गत राज्‍य वर्ष 2025 तक सभी प्राथमिक स्कूलों में कक्षा 3 तक सभी विद्यार्थियों द्वारा सार्वभौमिक बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान प्राप्त करने हेतु एक कार्यान्वयन योजना तैयार करेंगे।बोर्ड परीक्षाओं के आसान बनाने के लिए उन्हें फिर से डिजाईन किया जायेगा। परीक्षा में तथ्यों को रटने के बजाय मुख्य दक्षताओं का परीक्षण किया जायेगा, जिसमे सभी छात्रों को दो बार परीक्षा देने की अनुमति होगी।स्कूली प्रशासन में परिवर्तन किया जायेगा, इसके लिए एक नयी स्कूल गुणवत्ता आकलन एवं प्रत्यायन संरचना तथा सार्वजनिक और निजी दोनों प्रकार के स्कूलों को विनियमित करने के लिए एक स्वतंत्र प्राधिकरण का गठन किया जायेगा।

 


उच्च शिक्षा:

विविध प्रवेश तथा निकास विकल्पों के साथ चार-वर्षीय स्नातक डिग्री का आरंभ किया जायेगा।एम.फिल डिग्री को समाप्त कर दिया जाएगा।चिकित्सा एवं कानूनी शिक्षा को छोड़कर समस्त उच्च शिक्षा के लिए एकल अति महत्वपूर्ण व्यापक निकाय के रूप में भारत उच्च शिक्षा आयोग (Higher Education Commission of India– HECI) का गठन किया जाएगा।विभिन्न संस्थानों के मध्य अकादमिक क्रेडिटों को अंतरित एवं गणना को आसान करने के लिए एक एकेडमिक बैंक आफ क्रेडिट की स्थापना की जायेगी।महाविद्यालयों को 15 वर्षों में चरणबद्ध स्वायत्तता के साथ संबद्धता प्रणाली समाप्त की जाएगी, जिससे प्रत्येक महाविद्यालय एक स्वायत्त डिग्री देने वाली संस्था अथवा विश्वविद्यालय के एक घटक कॉलेज के रूप में विकसित हो सकेगा।

 

आकांक्षी जिले जैसे क्षेत्रों, जहाँ बड़ी संख्या में छात्रों को आर्थिक, सामाजिक या जातिगत बाधाओं का सामना करना पड़ता है, को ‘विशेष शैक्षिक क्षेत्र‘ के रूप में नामित किया जाएगा।सभी लड़कियों तथा ट्रांसजेंडर छात्रों को समान गुणवत्ता युक्त शिक्षा प्रदान करने के लिए, केंद्र सरकार ‘लैंगिक समावेशी कोष’ (Gender Inclusion Fund) की स्थापना करेगी।

 

चूंकि शिक्षा एक समवर्ती सूची का विषय है तथा अधिकांश राज्यों के अपने स्कूल बोर्ड हैं। अतः, इस नीति के वास्तविक कार्यान्वयन के लिए सभी राज्य सरकारों को एक साथ लाना होगा।