राष्ट्रीय समसामयिकी 1 (11-September-2021)^राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग^(National Commission for Minorities)
Posted on September 12th, 2021
पंजाब कैडर के पूर्व आईपीएस अधिकारी सरदार इकबाल सिंह लालपुरा ने हाल ही में ‘राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग’ के अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला है।
अल्पसंख्यक आयोग एक सांविधिक निकाय है, जिसकी स्थापना राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के तहत की गई थी।
यह निकाय भारत के अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों और हितों की रक्षा हेतु अपील के लिये एक मंच के रूप में कार्य करता है।
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम के मुताबिक, आयोग में अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष समेत कुल सात सदस्य का होना अनिवार्य है, जिसमें मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन समुदायों के सदस्य शामिल हैं।
प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल पद धारण करने की तिथि से तीन वर्ष की अवधि तक होता है।
एक महत्त्वपूर्ण निकाय के रूप में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) भारत के अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्त्व प्रदान करता है, जिससे उन्हें लोकतंत्र में अपने आप को प्रस्तुत करने का अवसर मिलता है।
आयोग ने अतीत में कई महत्त्वपूर्ण सांप्रदायिक दंगों और संघर्षों की जाँच की है, उदाहरण के लिये वर्ष 2011 के भरतपुर सांप्रदायिक दंगों की जाँच आयोग ने की थी तथा वर्ष 2012 में बोडो-मुस्लिम संघर्ष की जाँच के लिये भी आयोग ने एक दल असम भेजा था।
राष्ट्रीय समसामयिकी 1 (11-September-2021)राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग(National Commission for Minorities)
पंजाब कैडर के पूर्व आईपीएस अधिकारी सरदार इकबाल सिंह लालपुरा ने हाल ही में ‘राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग’ के अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला है।
अल्पसंख्यक आयोग एक सांविधिक निकाय है, जिसकी स्थापना राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के तहत की गई थी।
यह निकाय भारत के अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों और हितों की रक्षा हेतु अपील के लिये एक मंच के रूप में कार्य करता है।
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम के मुताबिक, आयोग में अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष समेत कुल सात सदस्य का होना अनिवार्य है, जिसमें मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन समुदायों के सदस्य शामिल हैं।
प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल पद धारण करने की तिथि से तीन वर्ष की अवधि तक होता है।
एक महत्त्वपूर्ण निकाय के रूप में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) भारत के अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्त्व प्रदान करता है, जिससे उन्हें लोकतंत्र में अपने आप को प्रस्तुत करने का अवसर मिलता है।
आयोग ने अतीत में कई महत्त्वपूर्ण सांप्रदायिक दंगों और संघर्षों की जाँच की है, उदाहरण के लिये वर्ष 2011 के भरतपुर सांप्रदायिक दंगों की जाँच आयोग ने की थी तथा वर्ष 2012 में बोडो-मुस्लिम संघर्ष की जाँच के लिये भी आयोग ने एक दल असम भेजा था।