कला एवं संस्कृति समसामियिकी 1 (30-July-2020)^नटेश मूर्ति (Natesa Idol)
Posted on July 30th, 2020
वर्ष 1998 में भारत से चोरी की गई ‘नटेश मूर्ति’ को लगभग 22 वर्षों बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को सौंप दिया गया है।
यह मूल रूप से राजस्थान के बाड़ौली में स्थित घटेश्वर महादेव मंदिर की 10 वीं शताब्दी की शिव की मूर्ति है।यह लगभग 4 फीट की ऊँचाई के साथ प्रतिहार शैली में एक दुर्लभ बलुआ पत्थर से निर्मित मूर्ति है।इसके दाहिने पैर के पीछे नंदी का एक सुंदर चित्रण दर्शाया गया है।
घटेश्वर मंदिर बाड़ौली के मंदिर समूहों में से एक है।इस मंदिर में शिव के नटराज स्वरुप को उत्कीर्ण किया गया है।यह मंदिर उड़ीसा मंदिर शैली से मिलता जुलता है। अलंकृत मंदिर, तोरण द्वार, शिव का बलिष्ठ रूप आदि इसकी विशेषताएँ है।
प्रतिहार शैली:
गुर्जर-प्रतिहार एक विशाल साम्राज्य था जिसके अंतर्गत गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश का क्षेत्र आता था। राजस्थान में जिस क्षेत्रीय शैली का विकास हुआ उसमें उसे गुर्जर-प्रतिहार अथवा महामारु कहा गया।इस शैली के अंतर्गत प्रारंभिक निर्माण मंडौर के प्रतिहारों, सांभर के चौहानों तथा चित्तौड़ के मौर्यों ने किया।इस प्रकार के मंदिरों में केकींद का नीलकंठेश्वर मंदिर, किराड़ू का सोमेश्वर मंदिर प्रमुख हैं।इस क्रम को आगे बढ़ाने वालों में जालौर के गुर्जर-प्रतिहार रहे और बाद में चौहानों, परमारों और गुहिलों ने मंदिर शिल्प को समृद्ध बनाया।
कला एवं संस्कृति समसामियिकी 1 (30-July-2020)नटेश मूर्ति (Natesa Idol)
वर्ष 1998 में भारत से चोरी की गई ‘नटेश मूर्ति’ को लगभग 22 वर्षों बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को सौंप दिया गया है।
यह मूल रूप से राजस्थान के बाड़ौली में स्थित घटेश्वर महादेव मंदिर की 10 वीं शताब्दी की शिव की मूर्ति है।यह लगभग 4 फीट की ऊँचाई के साथ प्रतिहार शैली में एक दुर्लभ बलुआ पत्थर से निर्मित मूर्ति है।इसके दाहिने पैर के पीछे नंदी का एक सुंदर चित्रण दर्शाया गया है।
घटेश्वर मंदिर बाड़ौली के मंदिर समूहों में से एक है।इस मंदिर में शिव के नटराज स्वरुप को उत्कीर्ण किया गया है।यह मंदिर उड़ीसा मंदिर शैली से मिलता जुलता है। अलंकृत मंदिर, तोरण द्वार, शिव का बलिष्ठ रूप आदि इसकी विशेषताएँ है।
प्रतिहार शैली:
गुर्जर-प्रतिहार एक विशाल साम्राज्य था जिसके अंतर्गत गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश का क्षेत्र आता था। राजस्थान में जिस क्षेत्रीय शैली का विकास हुआ उसमें उसे गुर्जर-प्रतिहार अथवा महामारु कहा गया।इस शैली के अंतर्गत प्रारंभिक निर्माण मंडौर के प्रतिहारों, सांभर के चौहानों तथा चित्तौड़ के मौर्यों ने किया।इस प्रकार के मंदिरों में केकींद का नीलकंठेश्वर मंदिर, किराड़ू का सोमेश्वर मंदिर प्रमुख हैं।इस क्रम को आगे बढ़ाने वालों में जालौर के गुर्जर-प्रतिहार रहे और बाद में चौहानों, परमारों और गुहिलों ने मंदिर शिल्प को समृद्ध बनाया।