व्यक्ति विशेष समसामयिकी 1 (14-October-2021)
मुगल बादशाह बहादुरशाह प्रथम
(Mughal Emperor Bahadur Shah I)

Posted on October 14th, 2021 | Create PDF File

hlhiuj

बहादुर शाह प्रथम का जन्म 14 अक्टूबर , 1643 को बुरहानपुर में हुआ था। बहादुर शाह प्रथम मुग़ल सम्राट औरंगजेब और नवाब बाई का सबसे बड़ा पुत्र था, जिसका वास्तविक नाम कुतुब उद-दीन मुहम्मद मुअज्ज़म था और औरंगजेब उसे शाह आलम भी कहकर बुलाता था।

 

उसे " शाहे बेख़बर” के नाम से भी जाना जाता है।

 

बहादुर शाह प्रथम को सन् 1663 ई. में दक्षिण के दक्कन पठार क्षेत्र और मध्य भारतमें पिता का प्रतिनिधि बनाकर भेजा गया।

 

सन1683-1684 ई. में उसने दक्षिण बंबई (वर्तमान मुंबई) गोवा के पुर्तग़ाली इलाक़ों में मराठों के ख़िलाफ़ सेना का नेतृत्व किया था।

 

औरंगजेब की 1707 में मृत्यु के बाद बहादुर शाह और उसके तीन भाइयों में मुगल बादशाह बनने के लिए उत्तराधिकार का युद्ध हुआ था।

 

उसने मई , 1707 में लाहौर के उत्तर में स्थित शाहदौला नामक पुल पर अपने को बहादुर शाह के नाम से भारत का सम्राट घोषित कर दिया था।

 

बहादुर शाह ने गद्दी पर बैठते ही मुनीम ख़ाँ को अपना वज़ीर नियुक्त किया औरंगज़ेब के समय के वज़ीर, असद ख़ाँ को ‘वकील-ए-मुतलक’ का पद दिया और साथ ही उसके बेटे जुल्फ़िकार ख़ाँ को उसने मीर बख़्शी बनाया।

 

बहादुर शाह प्रथम ने जिस तरह से अपने दरबार में पदों और ओहदों का वितरण किया उससे उसके दरबार में षड्यंत्र का सिलसिला शुरू हो गया था।

 

दरबार में दो दल बन गए थे – ईरानी दल और तूरानी दल, ईरानी दल ‘शिया मत’ को मानने वाले थे, जिसमें असद ख़ाँ तथा उसके बेटे जुल्फिकार ख़ाँ जैसे सरदार थे, जबकि तुरानी दल ‘सुन्नी मत’ के समर्थक थे, जिसमें ‘चिनकिलिच ख़ाँ तथा फ़िरोज़ ग़ाज़ीउद्दीन जंग जैसे लोग थे।

 

अगर जजिया कर की बात करें तो बहादुर शाह प्रथम ने जजिया कर को समाप्त नहीं किया था पर इसे उदार जरूर बना दिया था।

अपने छोटे से शासनावधि के दौरान बहादुर शाह ने संगीत को नए सिरे से समर्थन भी दिया।

 

 

ऐसा कहा जाता है कि बहादुर शाह प्रथम के शासन-काल के दौरान मंदिरों को नहीं तोडा गया था।

 

बहादुर शाह प्रथम के विषय में प्रसिद्ध लेखक 'सर सिडनी ओवन' ने लिखा है कि, "यह अन्तिम मुग़ल सम्राट था, जिसके विषय में कुछ अच्छे शब्द कहे जा सकते हैं।

 

इसके पश्चात् मुग़ल साम्राज्य का तीव्रगामी और पूर्ण पतन मुग़ल सम्राटों की राजनीतिक तुच्छता और शक्तिहीनता का द्योतक था।"

 

27 फरवरी 1712 को लाहौर में शालीमार बाग़ का पुनर्निर्माण करते समय बहादुर शाह की मौत हो गयी थी।

 

उसकी कब्र मेहरौली में 13 वीं शताब्दी की, सूफी संत, कुतबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह के निकट शाह आलम द्वितीय, और अकबर द्वितीय के साथ मोती मस्जिद में ही है।