महिलाओं से छेड़छाड़ एवं यौन उत्पीड़न (Molestation and Sexual Harassment of Women)
Posted on March 25th, 2020
महिलाओं से छेड़छाड़ एवं यौन उत्पीड़न (Molestation and Sexual Harassment of Women)-
महिलाओं से छेड़छाड़ एवं यौन उत्पीड़न के अंतर्गत उनके साथ हल्का फुल्का मजाक, मनोरंजन,चिढ़ाना से लेकर उनके गरिमा के विरुद्ध बोलना, शारीरिक स्पर्श से लेकर उनके सतीत्व पर चोट पहुंचाने (Assault on Modesty) तक की घटनाएं शामिल हो सकती हैं। पश्चिमी देशों में विशेषकर ऐसी घटनाओं को नारी शोषण या छेड़छाड़ (Eve teasting) कहा जाता है। महिलाओं के गरिमा के विरुद्ध ऐसी घटनाएं ज्यादातर सार्वजनिक स्थलों (Public Places) पर होती हैं। इनमें सड़क, बाजार, विद्यालय, पार्क, सार्वजनिक परिवहन के साधन, मेला, उत्सव एवं अन्य सार्वजनिक अवसर आदि शामिल होते हैं।
महिलाओं के साथ छेड़छाड़ एवं यौन उत्पीड़न से जहाँ एक ओर उनकी सामान्य गतिविधियों में बाधा पहुंचती है वहीं दूसरी ओर वे सार्वजनिक साधनों एवं सेवाओं की प्राप्ति से वंचित होती हैं। उनकी एक व्यक्ति के रूप में महत्ता समाप्त होने लगती है और वे असुरक्षा की भावना से ग्रस्त हो जाती हैं। यदि महिलाएं आर्थिक एवं भावनात्मक रूप से स्वतंत्र हो तो भी वे अपनी सुरक्षा के लिए पुरुषों पर निर्भर होने लगती हैं।कार्यस्थलों एवं अन्य सार्वजनिक स्थलों पर दिन-प्रतिदिन वे सदमे (Trauma) से गुजरती है।
पिछले कुछ दशकों से भारत में आधुनिकरण एवं औद्योगिकीकरण बढ़ा है। महिलाएं पढ़-लिखकर विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने लगी हैं। वे देर रात कार्यस्थल से अपने घर वापस आती हैं। उस दौरान इनके साथ छेड़छाड़ एवं यौन उत्पीड़न की घटनाएं ज्यादा होती हैं। लेकिन यह कोई एक स्थिति नहीं है जिसमें ऐसी घटनाएं घटती हैं। ऐसी घटनाएं स्कूल-कॉलेज जाने वाली लड़कियों के साथ भी होती हैं। जिस मात्रा में लड़कियों एवं महिलाओं की विभिन्न कारणों से गतिशीलता बढ़ी है उसी अनुपात में उनके साथ छेड़छाड़ एवं यौन उत्पीड़न के मामले भी बढ़े हैं। भारत में ऐसे कार्यों को अंजाम देने के लिए किसी विशेष उम्र मात्र के लोग ही शामिल नहीं हैं, बल्कि ऐसे कार्यों में बच्चों से लेकर वयस्क, बुजुर्ग सभी शामिल होते हैं।
एक अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ है कि 17 प्रतिशत कामकाजी महिलाओं को कार्य स्थलों पर यौन-उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है। इनमें से अधिकांश महिलाओं ने रोजगार खोने के भय से किसी प्रकार की औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं करवाई। शिकायत दर्ज न करवाने का एक बड़ा कारण कार्यस्थलों पर किसी प्रकार का औपचारिक शिकायत निवारण तंत्र की अनुपस्थिति भी रही है। समय के साथ जहाँ एक ओर यौन-उत्पीड़न के विरुद्ध जागरूकता बढ़ रही है वहीं दूसरी ओर सिर्फ 17 प्रतिशत महिलाओं को ही यौन-उत्पीड़न रोकने सम्बन्धी सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों के बारे में जानकारी है।
वास्तव में यौन उत्पीड़न परम्परा का भाग बनता जा रहा है, जो महिला-पुरुष के बीच असमान शक्ति सम्बन्ध को दर्शाता है। जब तक लोगों को महिलाओं के प्रति संवेदनशील नहीं बनाया जाएगा तब तक यौन उत्पीड़न एवं छेड़छाड़ जैसी घटनाओं को केवल कानून के माध्यम से नहीं रोका जा सकता है। भारत एक लोकतंत्र है। संविधान के अनुच्छेद-21 के अंतर्गत सभी व्यक्तियों को गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार प्राप्त है।लेकिन यौन उत्पीड़न एवं छेड़छाड़ के कारण महिलाओं को प्राप्त गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार का उल्लंघन होता है।
महिलाओं से छेड़छाड़ एवं यौन उत्पीड़न (Molestation and Sexual Harassment of Women)
महिलाओं से छेड़छाड़ एवं यौन उत्पीड़न (Molestation and Sexual Harassment of Women)-
महिलाओं से छेड़छाड़ एवं यौन उत्पीड़न के अंतर्गत उनके साथ हल्का फुल्का मजाक, मनोरंजन,चिढ़ाना से लेकर उनके गरिमा के विरुद्ध बोलना, शारीरिक स्पर्श से लेकर उनके सतीत्व पर चोट पहुंचाने (Assault on Modesty) तक की घटनाएं शामिल हो सकती हैं। पश्चिमी देशों में विशेषकर ऐसी घटनाओं को नारी शोषण या छेड़छाड़ (Eve teasting) कहा जाता है। महिलाओं के गरिमा के विरुद्ध ऐसी घटनाएं ज्यादातर सार्वजनिक स्थलों (Public Places) पर होती हैं। इनमें सड़क, बाजार, विद्यालय, पार्क, सार्वजनिक परिवहन के साधन, मेला, उत्सव एवं अन्य सार्वजनिक अवसर आदि शामिल होते हैं।
महिलाओं के साथ छेड़छाड़ एवं यौन उत्पीड़न से जहाँ एक ओर उनकी सामान्य गतिविधियों में बाधा पहुंचती है वहीं दूसरी ओर वे सार्वजनिक साधनों एवं सेवाओं की प्राप्ति से वंचित होती हैं। उनकी एक व्यक्ति के रूप में महत्ता समाप्त होने लगती है और वे असुरक्षा की भावना से ग्रस्त हो जाती हैं। यदि महिलाएं आर्थिक एवं भावनात्मक रूप से स्वतंत्र हो तो भी वे अपनी सुरक्षा के लिए पुरुषों पर निर्भर होने लगती हैं।कार्यस्थलों एवं अन्य सार्वजनिक स्थलों पर दिन-प्रतिदिन वे सदमे (Trauma) से गुजरती है।
पिछले कुछ दशकों से भारत में आधुनिकरण एवं औद्योगिकीकरण बढ़ा है। महिलाएं पढ़-लिखकर विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने लगी हैं। वे देर रात कार्यस्थल से अपने घर वापस आती हैं। उस दौरान इनके साथ छेड़छाड़ एवं यौन उत्पीड़न की घटनाएं ज्यादा होती हैं। लेकिन यह कोई एक स्थिति नहीं है जिसमें ऐसी घटनाएं घटती हैं। ऐसी घटनाएं स्कूल-कॉलेज जाने वाली लड़कियों के साथ भी होती हैं। जिस मात्रा में लड़कियों एवं महिलाओं की विभिन्न कारणों से गतिशीलता बढ़ी है उसी अनुपात में उनके साथ छेड़छाड़ एवं यौन उत्पीड़न के मामले भी बढ़े हैं। भारत में ऐसे कार्यों को अंजाम देने के लिए किसी विशेष उम्र मात्र के लोग ही शामिल नहीं हैं, बल्कि ऐसे कार्यों में बच्चों से लेकर वयस्क, बुजुर्ग सभी शामिल होते हैं।
एक अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ है कि 17 प्रतिशत कामकाजी महिलाओं को कार्य स्थलों पर यौन-उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है। इनमें से अधिकांश महिलाओं ने रोजगार खोने के भय से किसी प्रकार की औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं करवाई। शिकायत दर्ज न करवाने का एक बड़ा कारण कार्यस्थलों पर किसी प्रकार का औपचारिक शिकायत निवारण तंत्र की अनुपस्थिति भी रही है। समय के साथ जहाँ एक ओर यौन-उत्पीड़न के विरुद्ध जागरूकता बढ़ रही है वहीं दूसरी ओर सिर्फ 17 प्रतिशत महिलाओं को ही यौन-उत्पीड़न रोकने सम्बन्धी सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों के बारे में जानकारी है।
वास्तव में यौन उत्पीड़न परम्परा का भाग बनता जा रहा है, जो महिला-पुरुष के बीच असमान शक्ति सम्बन्ध को दर्शाता है। जब तक लोगों को महिलाओं के प्रति संवेदनशील नहीं बनाया जाएगा तब तक यौन उत्पीड़न एवं छेड़छाड़ जैसी घटनाओं को केवल कानून के माध्यम से नहीं रोका जा सकता है। भारत एक लोकतंत्र है। संविधान के अनुच्छेद-21 के अंतर्गत सभी व्यक्तियों को गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार प्राप्त है।लेकिन यौन उत्पीड़न एवं छेड़छाड़ के कारण महिलाओं को प्राप्त गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार का उल्लंघन होता है।