मोक्ष कविता द्वारा चंद्रकान्ता सैनी (Moksha poem by Chandrakanta Saini)
Posted on February 12th, 2020 | Create PDF File
मोक्ष
कहते हैं रब बसता नहीं मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में,
रब बसता है तो बस निश्चल दिल हमारे में।
कहते हैं सब राम, रहीम, खुदा ओर ईश्वर एक है।
पर समझ नहीं आता फिर क्यु धर्म यहां अनेक है।
क्यू धर्म के ग्रंथों को हमने धर्म के नाम पर बांटा है।
ईश्वर सरवशक्तिमान ओर एक है, जब ये सबका सार निकल के आता है।
ना वैराग्य से मुक्ति मिले, कर्म करो, धर्म करो गुरु ग्रंथ साहिब हमे सिखाता है,
गीता का भी तो सार यही निकल कर आता है।
जो कर्म करे स्वार्थ बिना, वही मोक्ष को पाता है। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, फिर क्यू लोगो को इतने नामो मे बांटा है।
जब कर्म का मतलब ही हमे धर्म समझ मे आता है।
क्यू लोग पाखंडओ मे पड़ कर धोखे खाते हैं,
रब को पाने के लिए किसी मध्यम की जरुरत नहीं, जब यही संदेश सभी विद्वानों ने बांटा है।
सबसे बड़ा धर्म तो बस इंसानियत का कहलाता है, जो इंसानो की कदर करे सचा इंसान वो ही कहलाता है।
सभी धर्मों का सार यही हर धर्म हमे सिखाता है,
जो चले सत्य की राह पर ओर निश्छल भाव से कर्म करे वो ही मोक्ष को पाता है।