महिलाओं के अश्लील चित्रण रोकने के कानूनी प्रावधान (Legal Provisions to Prevent Indecent portrayal of Women)
Posted on March 25th, 2020
महिलाओं के अश्लील चित्रण रोकने के कानूनी प्रावधान (Legal Provisions to Prevent Indecent portrayal of Women)-
महिलाओं का अश्लील चित्रण (प्रतिषेध) अधिनियम, 1986 [Indecent Representation of Women (Prohibition) Act, 1986] में अश्लील चित्रण को व्यापक अर्थ देने के साथ इस अपराध में शामिल व्यक्तियों के लिए सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य विज्ञापन, प्रकाशन, लेखन एवं पेंटिंग या किसी अन्य रूप में महिलाओं के अश्लील चित्रण या महिलाओं के वस्तुकरण (Objectification of Women) को रोकना है।
महिलाओं एवं बच्चों का अश्लील चित्रण (प्रतिषेध) अधिनियम, 2008 (Prohibition of Indecent Representation of Women and Children Act, 2008) के माध्यम से इस अधिनियम का दायरा व्यापक किया गया है। इसमें ध्वनि-चित्र (Audio-Visual) संचार माध्यमों के साथ अन्य इलेक्ट्रॉनिक संचार माध्यमों को भी शामिल किया गया है। अब मोबाइल क्लिप या सीडी के रूप में किए गए अश्लील विज्ञापन पर सख्त सजा दी जा सकती है। इस अधिनियम के तहत प्रथम अपराध की दशा में तीन साल तक की कारावास की सजा तथा पचास हजार रुपए से एक लाख रुपए तक का जुर्माना किया जा सकता है। दूसरी बार यह अपराध करने पर दो साल से सात साल तक की कारावास की सजा तथा एक लाख रुपए से पांच लाख रुपए तक का जुर्माना किया जा सकता है। इसके अलावा सूचना तकनीकी अधिनियम, 2000 (The Information Technology Act, 2000) में भी महिलाओं के अश्लील चित्रण को रोकने का प्रावधान किया गया है। सूचना तकनीक अधिनियम, 2000 के तहत अश्लील सामग्रियों (Pornographic Materials) का इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रकाशन (Publishing) और संचारण (Transmitting) को निषिद्ध किया गया है, ताकि इन्हें, देखने, सुनने व पढ़ने वाले लोगों को भ्रष्ट होने से रोका जा सके। इस अधिनियम के तहत पहली बार ऐसा अपराध करने पर पांच साल तक की कारावास की सजा तथा एक लाख रुपए तक का जुर्माना किया जा सकता है। अपराध दोहराए जाने पर दस साल तक की कारावास की सजा या दो लाख रुपए तक का जुर्माना किया जा सकता है।
केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियम) अधिनियम, 1995 (Cable Televison Network (Regulation) Act, 1995) भी ऐसे किसी विज्ञापन के प्रसारण पर रोक लगाती है, जो किसी जाति, प्रजाति, रंग, मत या राष्ट्रीयता का उपहास करता हो। यह भी प्रावधान किया गया है कि ऐसे किसी भी विज्ञापन का प्रसारण नहीं होगा जो महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों या प्रावधानों का उल्लंघन करता हो, महिलाओं को ऐसे विज्ञापन में नहीं दिखाया जा सकेगा जो उन्हें आपत्तिजनक रूप में पेश करता हो। महिलाओं को निष्क्रिय (Passive) एवं दब्बू (Submissive) रूप में नहीं दिखाया जा सकता जो परिवार या समाज में उनकी अधीनस्थ (Subordinate) एवं दोयम दर्जे की भूमिका (Secondary Role) को बढ़ावा देती हो। यह बात ध्यान देने योग्य है कि महिलाओं के अश्लील चित्रण के अपराध में राष्ट्रीय महिला आयोग कार्रवाई शुरू कर सकती है।
भारत में समय-समय पर पुस्तक लेखन, कला, चित्रण आदि में महिलाओं के अश्लील प्रदर्शन के सम्बन्ध में विवाद पैदा होते रहे हैं। इस सम्बन्ध में न्यायालयों ने समय-समय पर अश्लील चित्रण को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। अब तक भारत में यह माना जाता है कि अश्लील चित्रण केवल एक शब्द, भाग या पैराग्राफ से तय नहीं होता है, बल्कि सम्बन्धित पुस्तक, फिल्म या कला को सम्पूर्ण रूप से देखा जाना चाहिए कि अन्तिम रूप से देखने, पढ़ने व सुनने वालों या समाज को किस तरह से प्रभावित करता है। वैसे भी अश्लीलता का मानक विभिन्न देशों में अलग-अलग तरीके का होता है। अश्लीलता का निर्धारण सम्बन्धित समाज के मूल्यों एवं मानकों से तय होता है। न्यायालय का यद्ठ भी मानना रहा है कि जहाँ अश्लीलता एवं कला में मिश्रण देखने को मिलता है तो ऐसे मामलों में यह ध्यान रखा जाना चाहिए यदि वह चित्रण छाया के रूप या बहुत छोटे रूप में जो निरर्थक या मामूली हो तो उसे उपेक्षित किया जाना चाहिए। न्यायालय के दृष्टिकोण में यह आवश्यक है कि 'वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा सार्वजनिक शिष्टाचार एवं नैतिकता के बीच सन्तुलन होना चाहिए।
महिलाओं के अश्लील चित्रण रोकने के कानूनी प्रावधान (Legal Provisions to Prevent Indecent portrayal of Women)
महिलाओं के अश्लील चित्रण रोकने के कानूनी प्रावधान (Legal Provisions to Prevent Indecent portrayal of Women)-
महिलाओं का अश्लील चित्रण (प्रतिषेध) अधिनियम, 1986 [Indecent Representation of Women (Prohibition) Act, 1986] में अश्लील चित्रण को व्यापक अर्थ देने के साथ इस अपराध में शामिल व्यक्तियों के लिए सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य विज्ञापन, प्रकाशन, लेखन एवं पेंटिंग या किसी अन्य रूप में महिलाओं के अश्लील चित्रण या महिलाओं के वस्तुकरण (Objectification of Women) को रोकना है।
महिलाओं एवं बच्चों का अश्लील चित्रण (प्रतिषेध) अधिनियम, 2008 (Prohibition of Indecent Representation of Women and Children Act, 2008) के माध्यम से इस अधिनियम का दायरा व्यापक किया गया है। इसमें ध्वनि-चित्र (Audio-Visual) संचार माध्यमों के साथ अन्य इलेक्ट्रॉनिक संचार माध्यमों को भी शामिल किया गया है। अब मोबाइल क्लिप या सीडी के रूप में किए गए अश्लील विज्ञापन पर सख्त सजा दी जा सकती है। इस अधिनियम के तहत प्रथम अपराध की दशा में तीन साल तक की कारावास की सजा तथा पचास हजार रुपए से एक लाख रुपए तक का जुर्माना किया जा सकता है। दूसरी बार यह अपराध करने पर दो साल से सात साल तक की कारावास की सजा तथा एक लाख रुपए से पांच लाख रुपए तक का जुर्माना किया जा सकता है। इसके अलावा सूचना तकनीकी अधिनियम, 2000 (The Information Technology Act, 2000) में भी महिलाओं के अश्लील चित्रण को रोकने का प्रावधान किया गया है। सूचना तकनीक अधिनियम, 2000 के तहत अश्लील सामग्रियों (Pornographic Materials) का इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रकाशन (Publishing) और संचारण (Transmitting) को निषिद्ध किया गया है, ताकि इन्हें, देखने, सुनने व पढ़ने वाले लोगों को भ्रष्ट होने से रोका जा सके। इस अधिनियम के तहत पहली बार ऐसा अपराध करने पर पांच साल तक की कारावास की सजा तथा एक लाख रुपए तक का जुर्माना किया जा सकता है। अपराध दोहराए जाने पर दस साल तक की कारावास की सजा या दो लाख रुपए तक का जुर्माना किया जा सकता है।
केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियम) अधिनियम, 1995 (Cable Televison Network (Regulation) Act, 1995) भी ऐसे किसी विज्ञापन के प्रसारण पर रोक लगाती है, जो किसी जाति, प्रजाति, रंग, मत या राष्ट्रीयता का उपहास करता हो। यह भी प्रावधान किया गया है कि ऐसे किसी भी विज्ञापन का प्रसारण नहीं होगा जो महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों या प्रावधानों का उल्लंघन करता हो, महिलाओं को ऐसे विज्ञापन में नहीं दिखाया जा सकेगा जो उन्हें आपत्तिजनक रूप में पेश करता हो। महिलाओं को निष्क्रिय (Passive) एवं दब्बू (Submissive) रूप में नहीं दिखाया जा सकता जो परिवार या समाज में उनकी अधीनस्थ (Subordinate) एवं दोयम दर्जे की भूमिका (Secondary Role) को बढ़ावा देती हो। यह बात ध्यान देने योग्य है कि महिलाओं के अश्लील चित्रण के अपराध में राष्ट्रीय महिला आयोग कार्रवाई शुरू कर सकती है।
भारत में समय-समय पर पुस्तक लेखन, कला, चित्रण आदि में महिलाओं के अश्लील प्रदर्शन के सम्बन्ध में विवाद पैदा होते रहे हैं। इस सम्बन्ध में न्यायालयों ने समय-समय पर अश्लील चित्रण को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। अब तक भारत में यह माना जाता है कि अश्लील चित्रण केवल एक शब्द, भाग या पैराग्राफ से तय नहीं होता है, बल्कि सम्बन्धित पुस्तक, फिल्म या कला को सम्पूर्ण रूप से देखा जाना चाहिए कि अन्तिम रूप से देखने, पढ़ने व सुनने वालों या समाज को किस तरह से प्रभावित करता है। वैसे भी अश्लीलता का मानक विभिन्न देशों में अलग-अलग तरीके का होता है। अश्लीलता का निर्धारण सम्बन्धित समाज के मूल्यों एवं मानकों से तय होता है। न्यायालय का यद्ठ भी मानना रहा है कि जहाँ अश्लीलता एवं कला में मिश्रण देखने को मिलता है तो ऐसे मामलों में यह ध्यान रखा जाना चाहिए यदि वह चित्रण छाया के रूप या बहुत छोटे रूप में जो निरर्थक या मामूली हो तो उसे उपेक्षित किया जाना चाहिए। न्यायालय के दृष्टिकोण में यह आवश्यक है कि 'वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा सार्वजनिक शिष्टाचार एवं नैतिकता के बीच सन्तुलन होना चाहिए।