दहेज रोकने में कानूनी असफलता (Legal Failure to Prevent Dowry)

Posted on March 24th, 2020 | Create PDF File

दहेज रोकने में कानूनी असफलता (Legal Failure to Prevent Dowry)-

 

भारत में प्रतिवर्ष दहेज उत्या के लगभग 1500 मामले दर्ज किए जाते हैं। लेकिन इन मामलों की सही तरीके से जाँच नहीं हो पाती है। दहेज-हत्या के अधिकतम मामले लड़के के घर में होते हैं इसलिए लड़की की तरफ से साक्ष्य या गवाह का अभाव हो जाता है। ऐसे ज्यादातर मामलों की जाँच पारिवारिक झगड़ा या आत्महत्या का मामला मानकर की जाती है। कुछ मामलों में महिला के मृत्यु पूर्व दिए गए बयान (Dying Declaration) को पुलिस अपनी सुविधानुसार रंग-रूप देती है। यहाँ तक कि पुलिस पीड़ित महिला का फोटो या फिंगर प्रिंट तक नहीं लेती है। दहेज-हत्या के मामले न्यायालय तक पहुँचते पहुँचते इतने कमजोर हो जाते हैं कि शायद की इस मामलों में दोषी को कठोर सजा मिल पाती हो। संक्षेप में कहा जाए तो भारत में दहेज-रोधी कानून काटने से ज्यादा गुर्राने वाले (More Barking than Bites) बनकर रह गए हैं।

 

भारत में दहेज हत्या के मामले न रूकना केवल संविधान में दिए गए जीवन के अधिकार का ही उल्लंघन नहीं है बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर के समझौतों एवं संविदाओं, जैसे-मानवाधिकारों का सार्वभौमिक घोषणा पत्र (Universal Declaration of Human Rights-UDHR), महिलाओं के विरूद्ध हिंसा उन्मूलन की घोषणा (Declaration on the Elimination of Violence Against Women-DEVAW), एवं महिलाओं के विरूद्ध सभी प्रकार के भेदभाव उन्मूलन संबंधी संधिपत्र (Convention on the Elimination of ALL Forms of Discrimination Against Women-CEDAW) का भी उल्लंघन है। इन सबमें बर्बरता, क्रूरता एवं हिंसा को नकारा गया है एवं जीवन के अधिकार को स्वीकार किया गया है।