राष्ट्रीय समसामयिकी 1 (16-Apr-2021)
कोल्हापुरी के गुड़ को जीआई टैग मिला
(Kolhapuri Gur got GI tag)

Posted on April 16th, 2021 | Create PDF File

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हाल ही में कोल्हापुरी के गुड़ को जीआई टैग (GI tag) प्राप्त हुआ है।

 

कोल्हापुरी गुड़ :

भारत के महाराष्ट्र राज्य में भी किसान बड़े पैमाने पर गन्ना की खेती करते हैं तथा इस राज्य के कोल्हापुर में गुड़ का उत्पादन काफी होता है। यह गुड़ उत्पादन का एक बड़ा केंद्र हैं।

 

कोल्हापुरी गुड़ की गुणवत्ता काफी अच्छी है और इसका स्वाद भी अपने आप में लाजवाब होता है। यही कारण है कि कोल्हापुरी गुड़ न सिर्फ भारत के अन्य हिस्सों में बल्कि यह यूरोप, मध्य-पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में भी निर्यात किया जाता है।

 

कोल्हापुरी गुड़ को अनेक प्रकार से बनाया जाता है।

 

कोल्हापुरी गुड़ की विशेषताओं को देखते हुए हाल ही में इसे जीआई टैग (GI tag) दिया गया है।

 

कोल्हापुरी चप्पल

महाराष्ट्र राज्य का कोल्हापुर न सिर्फ गुड़ के लिए बल्कि यह अपनी चप्पलों के लिए भी प्रसिद्ध है। कोल्हापुरी चप्पल दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं।

 

कोल्हापुरी चप्पल की विशेषताओं के चलते ही इन्हें भी पूर्व में जीआई टैग प्राप्त हो चुका है।

 

क्या होता है भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication-GI)?

भौगोलिक संकेतक या जियोग्राफिकल इंडीकेशन का इस्तेमाल ऐसे उत्पादों के लिये किया जाता है, जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है। इन उत्पादों की विशिष्ट विशेषता एवं प्रतिष्ठा भी इसी मूल क्षेत्र के कारण होती है।

 

इस तरह का संबोधन उत्पाद की गुणवत्ता और विशिष्टता का आश्वासन देता है। दूसरे शब्दों में भौगोलिक चिन्ह या संकेत (जीआई) का शाब्दिक अर्थ एक ऐसे चिन्ह से है, जो वस्‍तुओं की पहचान (यथा-कृषि उत्पाद , प्राकृतिक वस्तुएँ या विनिर्मित वस्तुएँ आदि) एक देश के किसी स्थान या क्षेत्र विशेष में उत्‍पन्‍न होने के आधार पर करता है, जहां उक्‍त वस्‍तुओं की दी गई गुणवत्ता, प्रतिष्‍ठा या अन्‍य कोई विशेषताएं इसके भौगोलिक उद्भव में अनिवार्यत: योगदान देती हैं।

 

इस प्रकार जीआई टैग किसी उत्पाद की गुणवत्ता और उसकी अलग पहचान का सबूत है।

 

यह दो प्रकार के होते हैं -

 

पहले प्रकार में वे भौगोलिक नाम हैं जो उत्‍पाद के उद्भव के स्‍थान का नाम बताते हैं जैसे शैम्‍पेन, दार्जीलिंग आदि।

 

दूसरे गैर-भौगोलिक पारम्‍परिक नाम हैं जो यह बताते हैं कि एक उत्‍पाद किसी एक क्षेत्र विशेष से संबद्ध है जैसे अल्‍फांसो, बासमती, रोसोगुल्ला आदि।

 

जीआई टैग को औद्योगिक संपत्ति के संरक्षण के लिये पेरिस कन्वेंशन के तहत बौद्धिक संपदा अधिकारों (आईपीआर) के एक घटक के रूप में शामिल किया गया है।

 

किन वस्तुओं/पदार्थों को दिया जा सकता है जीआई टैग?

विश्व बौद्धिक संपदा संगठन के अनुसार निम्नलिखित उत्पादों को जीआई टैग दिया जा सकता है-

कृषि उत्पादों: जैसे चावल, जीरा, हल्दी, नींबू आदि।

 

खाद्यान्न वस्तुओं: जैसे रसगुल्ला, लड्डू, मंदिर के विशिष्ट प्रसाद आदि।

 

वाइन और स्पिरिट पेय: जैसे शैम्पेन और गोआ के एल्कोहलिक पेय पदार्थ फेनी आदि।

 

हस्तशिल्प वस्तुएं (हैंडीक्राफ्ट्स): जैसे मैसूर सिल्क, कांचीवरम सिल्क

 

इसके साथ ही मिट्टी से बनी मूर्तियां (टेराकोटा) और औद्योगिक उत्पाद आदि।

 

जीआई टैग से लाभ

जीआई टैग किसी क्षेत्र में पाए जाने वाले उत्पादन को कानूनी संरक्षण प्रदान करता है।

 

जीआई टैग के द्वारा उत्पादों के अनधिकृत प्रयोग पर अंकुश लगाया जा सकता है।

 

यह किसी भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित होने वाली वस्तुओं का महत्व बढ़ा देता है।

 

जीआई टैग के द्वारा सदियों से चले आ रहे परंपरागत ज्ञान को संरक्षित एवं उसका संवर्धन किया जा सकता है।

 

जीआई टैग के द्वारा स्थानीय उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने में मदद मिलती है।

 

इसके द्वारा टूरिज्म और निर्यात को बढ़ावा देने में मदद मिलती है।

 

भारत और विश्व में भौगोलिक संकेतक से जुड़े कानून

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भौगोलिक संकेतक का विनियमन विश्व व्यापार संगठन के बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं (ट्रिप्स) पर समझौते के तहत किया जाता है।

 

राष्ट्रीय स्तर पर यह कार्य ‘वस्तुओं का भौगोलिक सूचक’ (पंजीकरण और सरंक्षण) अधिनियम, 1999 के तहत किया जाता है, जिसे सितंबर 2003 से लागू किया गया था।

 

वर्ष 2004 में ‘दार्जिलिंग टी’ जीआई टैग प्राप्त करने वाला पहला भारतीय उत्पाद बना था।

 

गौरतलब है कि भौगोलिक संकेतक का पंजीकरण 10 वर्ष के लिये ही मान्य होता है। इसके बाद इसका पुनः नवीनीकरण कराया जा सकता है।