अंतर्राष्ट्रीय समसामयिकी 4 (18-Apr-2021)
अंटार्कटिक महाद्वीप के लिए भारत का 40वां वैज्ञानिक अभियान सम्पन्न
(India's 40th scientific expedition to Antarctic continent concludes)

Posted on April 17th, 2021 | Create PDF File

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हाल ही में भारत ने अंटार्कटिक महाद्वीप के लिए 40वां वैज्ञानिक अभियान सम्पन्न किया है। इसके साथ ही भारत ने अंटार्कटिक महाद्वीप में अपने वैज्ञानिक प्रयासों के चार सफल दशक भी पूरे किए हैं।

 

भारत का अंटार्कटिक महाद्वीप के लिए 40वां वैज्ञानिक अभियान :

भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा आयोजित अंटार्कटिक महाद्वीप के लिए 40वां वैज्ञानिक अभियान 94 दिनों में 12,000 नॉटिकल माइल की यात्रा पूरी करने के बाद 10 अप्रैल, 2021 को सफलतापूर्वक केपटाउन में लौट आया है। इस उपलब्धि के साथ ही भारत ने अंटार्कटिक महाद्वीप में अपने वैज्ञानिक प्रयासों के चार सफल दशक भी पूरे किए हैं।

 

भारत के अंटार्कटिक महाद्वीप के लिए 40वें वैज्ञानिक अभियान में भारतीय वैज्ञानिक, इंजीनियर, डॉक्टर तथा टेक्नीशियन शामिल थे, जिन्होंने 7 जनवरी, 2021 को गोवा के मोर्मुगाव बंदरगाह से अंटार्कटिक की यात्रा शुरू की थी।

 

इस टीम ने अंटार्कटिक महाद्वीप स्थित भारत के भारती और मैत्री स्थायी रिसर्च बेस स्टेशन में अपने अनुसंधान कार्य पूरे किए।

 

वैज्ञानिकों की इस टीम ने हैदराबाद स्थित भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केन्द्र (आईएनसीओआईएस) के सहयोग से 35 डिग्री और 50 डिग्री अक्षांशों के बीच 4 स्वायत्तशासी ओसन ऑब्जर्विंग डीडब्ल्यूएस (डायरेक्शनल वेव स्पेक्ट्रा) वेव ड्रिफटर्स तैनात किये हैं। ये ड्रिफटर्स आईएनसीओआईएस (हैदराबाद) को तरंगों की स्पेक्ट्रल अभिलक्षणों, समुद्री सतह तापमानों और समुद्र स्तरीय वायुमंडलीय दबावों का रियल टाइम डाटा प्रेषित करेंगे। इसके अतिरिक्त, ये मौसम पूर्वानुमानों में भी मदद करेंगे।

 

अंटार्कटिक महाद्वीप के लिए 40वें वैज्ञानिक अभियान का संचालन कोविड 19 महामारी के कारण उत्पन्न चुनौतियों के दरम्यान किया गया। हालांकि इस अभियान के दौरान अंटार्कटिक को कोरोना से मुक्त रखने के लिए आवश्यक कदम भी उठाए गए।

 

अंटार्कटिक महाद्वीप के बारे में :

अंटार्कटिक महाद्वीप की खोज लगभग 200 वर्ष पूर्व हुई थी। वर्तमान में अंटार्कटिक महाद्वीप पर मानव हस्तक्षेप में काफी वृद्धि आई है। उल्लेखनीय है कि विभिन्न अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि अंटार्कटिक महाद्वीप का अपरिवर्तित आदिम क्षेत्र (Pristine areas) मानव हस्तक्षेप से मुक्त एक बहुत छोटे क्षेत्र (अंटार्कटिका के 32%से कम) को कवर करता है जो मानवीय गतिविधियों के कारण क्षीण हो रहा है ।

 

विंट्स यूनिवर्सिटी (Wits University) के वैज्ञानिकों द्वारा अगस्त ,2020 में किए गए शोध के मुताबिक अंटार्कटिका महाद्वीप के 99.6% क्षेत्र को अभी भी निर्जन क्षेत्र माना जा सकता है, लेकिन इस क्षेत्र में कुछ जैव विविधता अभी भी विद्यमान है।

 

अंटार्कटिक, विश्व का सबसे ठंडा, शुष्क और तेज हवाओं वाला महाद्वीप है। अंटार्कटिक को एक बर्फीला रेगिस्तान माना जाता है।

 

अंटार्कटिक का कोई स्थायी निवासी नहीं है। पुरे वर्ष भर में लगभग 1,000 से 5,000 व्यक्ति इस महाद्वीप पर फैले विभिन्न अनुसंधान केन्द्रों पर उपस्थित रहते हैं।

 

यहाँ पेंगुइन, सील, निमेटोड, टार्डीग्रेड, पिस्सू, विभिन्न प्रकार के शैवाल और सूक्ष्मजीव के अलावा टुंड्रा वनस्पति भी पायी जाती है।

 

अंटार्कटिक पृथ्वी का दक्षिणतम महाद्वीप है, जिसमें दक्षिणी ध्रुव स्थित है। यह चारों ओर से दक्षिणी महासागर से घिरा हुआ है।

 

अपने लगभग 140 लाख वर्ग किलोमीटर (54 लाख वर्ग मील) क्षेत्रफल के साथ यह, एशिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका के बाद, पृथ्वी का पांचवां सबसे बड़ा महाद्वीप है। अंटार्कटिक का 98% भाग औसतन 1.6 किलोमीटर मोटी बर्फ़ से आच्छादित है।

 

अंटार्कटिक पर पहुँचने वाले प्रथम भारतीय नागरिक गिरिराज सिरोही थे। श्री सिरोही एक प्लांट फिजियोलॉजिस्ट थे तथा वे एक अमरीकी अभियान दल के सदस्य के रूप में वर्ष 1960 में अंटार्कटिका पहुँचे थे।

 

अंटार्कटिक के संरक्षण हेतुअंटार्कटिक संधि’ :

अंटार्कटिक संधि पर 1 दिसंबर, 1959 को वाशिंगटन(यूएसए) में 12 देशों द्वारा हस्ताक्षर किये गए थे। भारत द्वारा वर्ष 1983 में इस संधि पर हस्ताक्षर किये गए थे।

 

23 जून, 1961 को अंटार्कटिक संधि लागू हुई थी।

 

यह संधि अंटार्कटिका महाद्वीप के संबंध में अंतरराष्ट्रीय संबंधों (International Relationas) को विनियमित करती है।

 

इस संधि में प्रावधान किया गया है कि सभी सदस्यों द्वारा अंटार्कटिका महाद्वीप के क्षेत्र का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये किया जाएगा।

 

अंटार्कटिक संधि के वाशिंगटन(यूएसए) में होने के कारण, इसे वाशिंगटन संधि के नाम से भी जाना जाता है।