पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी समसामयिकी 2(2-Feb-2023)
हैदराबाद में IIMR: उत्कृष्टता केंद्र
(IIMR in Hyderabad : Center of Excellence (CoE))

Posted on February 2nd, 2023 | Create PDF File

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हाल ही में, केंद्रीय बजट 2023 की प्रस्तुति के दौरान, केंद्रीय वित्त मंत्री ने घोषणा की कि हैदराबाद में भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान (IIMR) 'श्री अन्ना' अर्थात् कदन्न पर शोध करने के लिये के लिये उत्कृष्टता केंद्र (CoE) के रूप में कार्य करेगा।

 

इसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को कदन्न के लिये एक वैश्विक केंद्र बनाना होगा।

 

खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार, भारत 2020 में 41% की हिस्सेदारी के साथ दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक और कई प्रकार के 'श्री अन्ना' (कदन्न) का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है।

 

राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश इसके प्रमुख उत्पादक हैं।

 

जैसा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा वर्ष 2023 को 'अंतर्राष्ट्रीय कदन्न वर्ष' घोषित किया गया है।

 

पिछले 5-6 वर्षों में देश में कदन्न आधारित उत्पादों के प्रति रुचि और खपत में वृद्धि के पीछे IIMR को मुख्य चालक माना जाता है।

 

अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज/कदन्न वर्ष :

 

वर्ष 2023 में अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष (International Year of Millets- IYM) मनाने के भारत के प्रस्ताव को वर्ष 2018 में खाद्य और कृषि संगठन (FAO) द्वारा अनुमोदित किया गया था तथा संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के रूप में घोषित किया है।

 

इसे संयुक्त राष्ट्र के एक प्रस्ताव द्वारा अपनाया गया और इसका नेतृत्व भारत ने किया तथा 70 से अधिक देशों ने इसका समर्थन किया।

 

उद्देश्य :

 

खाद्य सुरक्षा और पोषण में पोषक अनाज/बाजरा/मोटे अनाज के योगदान के बारे में जागरूकता का प्रसार करना।

 

पोषक अनाज के टिकाऊ उत्पादन और गुणवत्ता में सुधार के लिये हितधारकों को प्रेरित करना।

 

उपर्युक्त दो उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये अनुसंधान और विकास एवं विस्तार सेवाओं में निवेश बढ़ाने पर ध्यान देना।

 

पोषक अनाज/बाजरा/मोटे अनाज :

 

पोषक अनाज एक सामूहिक शब्द है जो कई छोटे-बीज वाले फसलों को संदर्भित करता है, जिसकी खेती खाद्य फसल के रूप में मुख्य रूप से समशीतोष्ण, उपोष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों व शुष्क क्षेत्रों में सीमांत भूमि पर की जाती है।

 

भारत में उपलब्ध कुछ सामान्य फसलों में बाजरा रागी (फिंगर मिलेट), ज्वार (सोरघम), समा (छोटा बाजरा), बाजरा (मोती बाजरा) और वरिगा (प्रोसो मिलेट) शामिल हैं।

 

इन अनाजों के प्रमाण सबसे पहले सिंधु सभ्यता में पाए गए और ये भोजन के लिये उगाए गए पहले पौधों में से थे।

 

लगभग 131 देशों में इसकी खेती की जाती है, यह एशिया और अफ्रीका में लगभग 60 करोड़ लोगों के लिये पारंपरिक भोजन है। 

 

भारत दुनिया में बाजरा का सबसे बड़ा उत्पादक है।

 

यह वैश्विक उत्पादन का 20% और एशिया के उत्पादन का 80% हिस्सा है।

 

वैश्विक वितरण : 

 

भारत, नाइजीरिया और चीन विश्व में बाजरा के सबसे बड़े उत्पादक हैं, जिनका वैश्विक उत्पादन में 55% से अधिक की हिस्सेदारी है। 

 

कई वर्षों तक भारत बाजरा का एक प्रमुख उत्पादक था। हालाँकि हाल के वर्षों में अफ्रीका में बाजरे के उत्पादन में प्रभावशाली रूप से वृद्धि हुई है।

 

महत्त्व :

 

उच्च पोषण से युक्त : 

 

बाजरा अपने उच्च प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और लौह तत्त्व जैसे खनिजों के कारण गेहूँ एवं चावल की तुलना में कम खर्चीला तथा पौष्टिक रूप से बेहतर है।

 

बाजरा कैल्शियम और मैग्नीशियम से भी भरपूर होता है। उदाहरण के लिये रागी को सभी अनाजों में सबसे अधिक कैल्शियम स्रोत के रूप में जाना जाता है।

 

बाजरा पोषण सुरक्षा प्रदान करता है और विशेष रूप से बच्चों एवं महिलाओं के बीच पोषण की कमी के खिलाफ ढाल के रूप में कार्य करता है। इसमें उपस्थित उच्च लौह तत्त्व भारत में महिलाओं की प्रजनन अवस्था के दौरान तथा शिशुओं में एनीमिया के उच्च प्रसार को रोकने में सक्षम हैं।

 

ग्लूटेन मुक्त तथा कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स :

 

बाजरा जीवनशैली की समस्याओं जैसे कि मोटापा और मधुमेह जैसी स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने में मदद करता है क्योंकि वे ग्लूटेन मुक्त होते हैं और उनका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है (खाद्य पदार्थों में कार्बोहाइड्रेट की एक सापेक्ष रैंकिंग इस आधार पर होती है कि वे रक्त में शर्करा के स्तर को किस प्रकार  प्रभावित करती हैं)।

 

उन्नत उपज वाली फसल :

 

बाजरा प्रकाश-संवेदी होता है (फूलों के लिये विशिष्ट प्रकाश काल की आवश्यकता नहीं होती) तथा जलवायु परिवर्तन के लिये कम संवेदनशील भी है।

 

बाजरा बहुत कम या बिना किसी बाहरी रखरखाव के खराब मिट्टी में भी बढ़ सकता है।

 

बाजरा पानी की कम खपत करता है तथा सूखे की स्थिति में असिंचित परिस्थितियों में बहुत कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी बढ़ने में सक्षम होता है।

 

बाजरा में कम कार्बन और वाटर फुटप्रिंट होते हैं (चावल के पौधों को उगाने के लिये बाजरे की तुलना में कम-से-कम 3 गुना अधिक पानी की आवश्यकता होती है)।