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भारत में उम्रकैद की सजा कितने सालों की होती है? (How many years of life sentence is there in India?)

Posted on March 5th, 2019 | Create PDF File

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क्या आप जानते हैं कि उम्रकैद की सजा मिलने पर भी किसी कैदी को 14 या 20 साल के बाद ही जेल से रिहाई मिल जाती है ऐसा कैसे? इसके पीछे क्या कारण हो सकता है? उम्रकैद की सजा कितने सालों के लिए होती है? आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते हैं।

 

जब किसी कैदी का आरोप सिद्ध होने पर उम्रकैद की सजा मिलती है तो इसका मतलब उसे ताउम्र जेल में रहना पड़ेगा।परन्तु ऐसा सुनने या देखने को मिलता है कि उम्रकैद मिलने पर भी किसी कैदी को सिर्फ 14 साल में ही जेल से रिहा कर दिया गया। क्या आपने कभी सोचा है ऐसा क्यों? उम्रकैद या आजीवन कारावास का अर्थ ही होता है दोषी की जिंदगी समाप्त होने तक जेल में रहना, यानी जब तक अपराधी की सांसें ना खत्म हो जाएं उसे रिहाई नहीं मिलनी चाहिए तो फिर कैसे कोई दोषी 14 साल में जेल से बाहर आ जाता है।

 

हम आपको बता दें कि संविधान में कहीं नहीं लिखा है कि उम्रकैद की सजा 14 साल की होगी। देश की हर अदालत आरोप साबित होने के बाद ये तय करती है कि अपराधी को उम्रकैद की सजा मिलेगी या कोई और सजा।

 

सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में अपने निर्णय से यह स्पष्ट किया है कि आजीवन कारावास या उम्रकैद का अर्थ है जीवनभर के लिए जेल और इससे ज्यादा कुछ नहीं। उम्रकैद का मतलब उम्र भर के लिए जेल।

 

दरअसल उम्रकैद की सजा 14 साल की नहीं होती है।भारत में इसको लेकर गलत अवधारणाएं हैं। भारतीय कानून में कई सारे नियम बनाएं गये हैं, अपराधी के अपराध के अनुसार उसको उम्रकैद की सजा मिलेगी या कुछ और ये बहुत सोच समझकर तय किया जाता है।

 

ये तो हम जानते ही हैं कि अदालत का काम सजा सुनाना होता है परन्तु उसको एक्जीक्यूट करने का काम राज्य सरकार के हाथ में होता है। ये राज्य सरकार को अधिकार दिया गया है कि उम्रकैद के आरोपी को 14 साल में रिहा करे, 20 साल में या मौत होने तक जेल में रखे।

 

भारत के संविधान में उम्रकैद के बारे में क्या लिखा गया है?

 

भारत के संविधान में ऐसा नहीं लिखा है कि उम्रकैद की सजा 14, 20 या 30 वर्षों की होगी।अपराधी को आजीवन कारावास मिलने का अर्थ है कि जब तक उसकी मृत्यु ना हो जाए उसे जेल में ही सजा काटनी होगी।

 

आइये अब 14 साल की सजा के पीछे के कारण के बारें में अध्ययन करते हैं।

 

कैदी की अवधि को कम करने के लिए, संविधान की सीआरपीसी धारा 432 के तहत उचित सरकार को एक विशिष्ट आदेश को पारित करना होगा।

 

साथ ही संविधान की सीआरपीसी की धारा 433-ए के तहत राज्य सरकार को यह अधिकार मिला हुआ है कि वह कैदियों की सजा को कम कर सकती है या निलंबित कर सकती है। सजा कैसी भी हो चाहे कुछ महीनों की, वर्षों की या उम्रकैद, राज्य सरकारों के पास उसे कम कर देने की गुजारिश करने की पूरी छूट होती है।

 

कैदी राज्य सरकार की निगरानी में होता है इसलिए राज्य सरकार पर यह जिम्मा सौपा गया है, ऐसे में अगर राज्य सरकार उसकी सजा कम करने की अपील करे तो उसे सुन लिया जाता है। इसमें ध्यान देने वाली बात यह है कि उम्रकैद 16 साल या 30 साल या हमेशा के लिए हो सकती है लेकिन 14 साल से कम नहीं हो सकती है।

 

यह संविधान के द्वारा तय किया गया है कि राज्य सरकार ये सुनिश्चित करे कि उम्रकैद की सजा मिला हुआ अपराधी 14 साल से पहले रिहा न हो।

 

क्या आप जानते हैं कि रिहाई के क्या कारण हो सकते हैं?

 

राज्य सरकार 14 साल के बाद कैदी के चाल चलन, बिमारी, पारिवारिक मुद्दों या इस प्रकार कोई भी कारण जो वाकई सही हो या जरूरी हो, उसके आधार पर उसे 14 साल के बाद कभी भी रिहा कर सकती है।

 

ऐसा कहना गलत होगा कि उम्रकैद या आजीवन कारावास 14 वर्षों के लिए ही होता है। सभी मामलों में उम्रकैद की सजा 14 वर्षों के लिए नहीं हो सकती है। उम्रकैद का अर्थ ही है उम्र भर के लिए सजा।