पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी समसामयिकी 1(18-Mar-2023)हॉर्सशू क्रैब(Horseshoe Crab)
Posted on March 19th, 2023 | Create PDF File
ओडिशा के बालासोर ज़िले में चाँदीपुर और बलरामगढ़ी तट पर विनाशकारी मत्स्यन प्रथाओं के कारण हॉर्सशू क्रैब, औषधीय रूप से अमूल्य एवं पृथ्वी पर सबसे पुराने जीवित प्राणियों में से एक, अपने परिचित प्रजनन स्थल से गायब हो रहे हैं।
भारत में हॉर्सशू क्रैब की दो प्रजातियाँ हैं- तटीय हॉर्सशू क्रैब (टैचीप्लस गिगास),
मैंग्रोव हॉर्सशू क्रैब (कार्सिनोस्कॉर्पियस रोटुंडिकाउडा)।
साथ ही इनकी सघनता ओडिशा में पाई जाती है।
ये दोनों प्रजातियाँ अभी IUCN की रेड लिस्ट में सूचीबद्ध नहीं हैं, लेकिन वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची 4 का हिस्सा हैं।
हॉर्सशू क्रैब का खून तेज़ी से नैदानिक अभिकर्मक तैयार करने हेतु बहुत महत्त्वपूर्ण है।
सभी इंजेक्टेबल और दवाओं की जाँच हॉर्सशू क्रैब की मदद से की जाती है।
हॉर्सशू क्रैब के अभिकर्मक से एक अणु विकसित किया गया है जो गर्भवती महिलाओं को प्रभावित करने वाली बीमारी प्री-एक्लेमप्सिया के इलाज में मदद करेगा।
पुरापाषाणकालीन अध्ययन के अनुसार, हॉर्सशू क्रैब की आयु 450 मिलियन वर्ष है।
यह प्राणी अपनी मज़बूत प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण बिना किसी रूपात्मक परिवर्तन के पृथ्वी पर जीवित रहता है।