हिंदी दिवस और हिंदुस्तानी भाषा (Hindi Day and Hindustani Language)
Posted on September 14th, 2018
भाषा अभिव्यक्ति का एक साधन है।भारत विश्व का सर्वाधिक भाषायी विविधता वाला देश है। यहां 1652 मातृभाषायें तथा 5000 से ज्यादा बोलियां प्रचलित हैं। भारतीय संविधान में हिंदी सहित कुल 22 भारतीय भाषाओं को आधिकारिक भाषा के तौर पर आठवीं अनुसूची में जगह दी गई है। हिंदी यहां के 77 प्रतिशत से ज्यादा लोगों द्वारा बोली तथा समझी जाती है। भारत की संविधान सभा नें 14 सितंबर 1949 को सर्वसम्मति से इसे ‘राजभाषा’ का दर्जा प्रदान किया था। देश भर में हिंदी भाषा के प्रचार- प्रसार और संवर्धन को प्रोत्साहन देने के लिए वर्ष 1953 से, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के प्रयासों से 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसके अंतर्गत एक पखवाड़े तक विभिन्न स्तरों के हिंदी आयोजनों जैसे- हिंदी विचार गोष्ठी, काव्य गोष्ठी, वाद- विवाद प्रतियोगिता, निबंध लेखन एवं कवि सम्मेलनों का आयोजन किया जाता है।
आज हिंदी विश्व की चौथी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा बन चुकी है। भारत के अतिरिक्त फिजी, नेपाल, मारीशस, दक्षिण अफ्रीका, सं.अ.अ., सं.रा.अ., पाकिस्तान, युगांडा जैसे कई देशों में बोली व समझी जाती है। विश्व के करीब 176 विश्वविद्यालयों में इसके शिक्षण- प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। हालांकि यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि इतनी व्यापक उपस्थिति रखने के बावजूद संयुक्त राष्ट्र संघ में अभी तक इसे आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार नही किया गया है।
वास्तव में ‘हिंदी’ एक फारसी शब्द ‘हिंद’ से व्युत्पन्न है, जिसका अर्थ होता है- ‘सिंधु नदी का सीमावर्ती क्षेत्र’। भारत में हिंदी का उद्भव और विकास 7वीं शताब्दी के आस-पास संस्कृत की पाली एवं प्राकृत भाषाओं के अपभ्रंश के रूप में हुआ। प्रारंभिक हिंदी का साहित्य सृजन अवधी और बृज जैसी अलग- अलग हिंदी बोलियों में हुआ। बाद में भारतेंदु हरिश्चंद्र जी द्वारा इसे हिंदी खड़ी बोली के रूप में स्थापित कर दिया गया। संस्कृत के बाद प्रायः हिंदी ही सर्वाधिक वैज्ञानिक व्याकरण रखने वाली भाषा है। इसके व्याकरण में कहीं कोई अपवाद या टकराव नहीं मिलता है। साथ ही इसकी एक बड़ी विशेषता यह भी है, कि – यह जैसी लिखी जाती है, वैसी ही बोली जाती है। अंग्रेजी या अन्य भाषाओं की तरह इसमें कुछ साइलेंट नहीं होता और न ही किसी Article ( A, An, The) का कोई प्रयोग होता है। हिंदी का शब्दकोष और भाषा प्रवणता इतनी विस्तृत है कि इसमें जितना उतरते जाओ, उतनी ही नवीनता और अभिव्यंजना झलकती जाती है। यह देवनागरी लिपि में बाये से दायीं ओर लिखी जाने वाली एक भाषा है, जिसकी वर्णमाला में 52 अक्षर हैं। संसार की किसी भी ध्वनि को हिंदी में जैसे का तैसा लिखा जा सकता है, जबकि अन्य भाषाओं में यह यथावत संभव नहीं है। आजकल बाजार में कई सॉफ्टवेयर और तकनीकि संसाधन ऐसे आ गये हैं, जिनके माध्यम से हिंदी इंटरनेट की दुनिया में तेजी से फैल रही है। साथ ही हिंदी मीडिया, हिंदी सिनेमा और हिंदी गीतों की लोकप्रियता का भी हिंदी के प्रचार- प्रसार में काफी योगदान है। हिंदी लेखन में अंग्रेजी शब्दों की बढ़ती घुसपैठ और आधिक्यता को देखते हुए कुछ हिंदी विद्वान इसे हिंदी भाषा उसकी शुध्दता और व्याकरण के लिए खतरा मानते हैं, वहीं दूसरे कई भाषा- विशेषज्ञ इसे हिंदी की स्वीकार्यता और प्रयोग में वृध्दि के रूप में देखते हैं।
1918 में हिंदी साहित्य सम्मेलन, इंदौर में महात्मा गांधी ने हिंदी को जनभाषा करार देते हुए इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा दिये जाने की बात कही थी, लेकिन आंतरिक भाषायी भिन्नता और टकराव की वजह से आजादी के 72 वर्षों बाद भी हिंदी इस विभूति से अलंकृत नहीं हो सकी है। गांधी जी जिस हिंदी की बात किया करते थे वह उर्दू मिश्रित हिंदी थी, जो फारसी लिपि में लिखी जाती थी। इसे वे अक्सर ‘हिंदुस्तानी’ के नाम से संबोधित किया करते थे। दरअसल भारतीय भाषाओं के साथ उनका सांस्कृतिक समावेश- लहजा, पहनावा, संस्कृति, त्यौहार, वेशभूषा आदि भी जुड़े हुए हैं। इसलिए जब भी किसी भारतीय भाषा पर प्रहार होता है, तो भारत की संभूत संस्कृति प्रभावित होती है। यह बात सही है कि- अंग्रेजी की मान्यता और समझ अंतरराष्ट्रीय तौर पर पाई जाती है। वैश्विक निकायों से जुड़े रहने के लिए इसे जानना और समझना आवश्यक है। फिर भी भारतीय भाषाओं पर हावी होते इसके प्रभुत्व और खतरे को नकारा नहीं जा सकता। केन्द्र एवं राज्य सरकारों को हिंदी के साथ- साथ सभी अन्य भारतीय भाषाओं के विकास एवं प्रचार-प्रसार पर बल दिया जाना चाहिए, ताकि अंग्रेजी जैसी किसी भी विदेशी भाषा के अतिक्रमण को सीमित रखा जा सके एवं भारतीय सांस्कृतिक धरोहर और सभ्यता चिरंतन अक्षुण्य बनी रहे !
हिंदी दिवस और हिंदुस्तानी भाषा (Hindi Day and Hindustani Language)
भाषा अभिव्यक्ति का एक साधन है।भारत विश्व का सर्वाधिक भाषायी विविधता वाला देश है। यहां 1652 मातृभाषायें तथा 5000 से ज्यादा बोलियां प्रचलित हैं। भारतीय संविधान में हिंदी सहित कुल 22 भारतीय भाषाओं को आधिकारिक भाषा के तौर पर आठवीं अनुसूची में जगह दी गई है। हिंदी यहां के 77 प्रतिशत से ज्यादा लोगों द्वारा बोली तथा समझी जाती है। भारत की संविधान सभा नें 14 सितंबर 1949 को सर्वसम्मति से इसे ‘राजभाषा’ का दर्जा प्रदान किया था। देश भर में हिंदी भाषा के प्रचार- प्रसार और संवर्धन को प्रोत्साहन देने के लिए वर्ष 1953 से, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के प्रयासों से 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसके अंतर्गत एक पखवाड़े तक विभिन्न स्तरों के हिंदी आयोजनों जैसे- हिंदी विचार गोष्ठी, काव्य गोष्ठी, वाद- विवाद प्रतियोगिता, निबंध लेखन एवं कवि सम्मेलनों का आयोजन किया जाता है।
आज हिंदी विश्व की चौथी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा बन चुकी है। भारत के अतिरिक्त फिजी, नेपाल, मारीशस, दक्षिण अफ्रीका, सं.अ.अ., सं.रा.अ., पाकिस्तान, युगांडा जैसे कई देशों में बोली व समझी जाती है। विश्व के करीब 176 विश्वविद्यालयों में इसके शिक्षण- प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। हालांकि यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि इतनी व्यापक उपस्थिति रखने के बावजूद संयुक्त राष्ट्र संघ में अभी तक इसे आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार नही किया गया है।
वास्तव में ‘हिंदी’ एक फारसी शब्द ‘हिंद’ से व्युत्पन्न है, जिसका अर्थ होता है- ‘सिंधु नदी का सीमावर्ती क्षेत्र’। भारत में हिंदी का उद्भव और विकास 7वीं शताब्दी के आस-पास संस्कृत की पाली एवं प्राकृत भाषाओं के अपभ्रंश के रूप में हुआ। प्रारंभिक हिंदी का साहित्य सृजन अवधी और बृज जैसी अलग- अलग हिंदी बोलियों में हुआ। बाद में भारतेंदु हरिश्चंद्र जी द्वारा इसे हिंदी खड़ी बोली के रूप में स्थापित कर दिया गया। संस्कृत के बाद प्रायः हिंदी ही सर्वाधिक वैज्ञानिक व्याकरण रखने वाली भाषा है। इसके व्याकरण में कहीं कोई अपवाद या टकराव नहीं मिलता है। साथ ही इसकी एक बड़ी विशेषता यह भी है, कि – यह जैसी लिखी जाती है, वैसी ही बोली जाती है। अंग्रेजी या अन्य भाषाओं की तरह इसमें कुछ साइलेंट नहीं होता और न ही किसी Article ( A, An, The) का कोई प्रयोग होता है। हिंदी का शब्दकोष और भाषा प्रवणता इतनी विस्तृत है कि इसमें जितना उतरते जाओ, उतनी ही नवीनता और अभिव्यंजना झलकती जाती है। यह देवनागरी लिपि में बाये से दायीं ओर लिखी जाने वाली एक भाषा है, जिसकी वर्णमाला में 52 अक्षर हैं। संसार की किसी भी ध्वनि को हिंदी में जैसे का तैसा लिखा जा सकता है, जबकि अन्य भाषाओं में यह यथावत संभव नहीं है। आजकल बाजार में कई सॉफ्टवेयर और तकनीकि संसाधन ऐसे आ गये हैं, जिनके माध्यम से हिंदी इंटरनेट की दुनिया में तेजी से फैल रही है। साथ ही हिंदी मीडिया, हिंदी सिनेमा और हिंदी गीतों की लोकप्रियता का भी हिंदी के प्रचार- प्रसार में काफी योगदान है। हिंदी लेखन में अंग्रेजी शब्दों की बढ़ती घुसपैठ और आधिक्यता को देखते हुए कुछ हिंदी विद्वान इसे हिंदी भाषा उसकी शुध्दता और व्याकरण के लिए खतरा मानते हैं, वहीं दूसरे कई भाषा- विशेषज्ञ इसे हिंदी की स्वीकार्यता और प्रयोग में वृध्दि के रूप में देखते हैं।
1918 में हिंदी साहित्य सम्मेलन, इंदौर में महात्मा गांधी ने हिंदी को जनभाषा करार देते हुए इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा दिये जाने की बात कही थी, लेकिन आंतरिक भाषायी भिन्नता और टकराव की वजह से आजादी के 72 वर्षों बाद भी हिंदी इस विभूति से अलंकृत नहीं हो सकी है। गांधी जी जिस हिंदी की बात किया करते थे वह उर्दू मिश्रित हिंदी थी, जो फारसी लिपि में लिखी जाती थी। इसे वे अक्सर ‘हिंदुस्तानी’ के नाम से संबोधित किया करते थे। दरअसल भारतीय भाषाओं के साथ उनका सांस्कृतिक समावेश- लहजा, पहनावा, संस्कृति, त्यौहार, वेशभूषा आदि भी जुड़े हुए हैं। इसलिए जब भी किसी भारतीय भाषा पर प्रहार होता है, तो भारत की संभूत संस्कृति प्रभावित होती है। यह बात सही है कि- अंग्रेजी की मान्यता और समझ अंतरराष्ट्रीय तौर पर पाई जाती है। वैश्विक निकायों से जुड़े रहने के लिए इसे जानना और समझना आवश्यक है। फिर भी भारतीय भाषाओं पर हावी होते इसके प्रभुत्व और खतरे को नकारा नहीं जा सकता। केन्द्र एवं राज्य सरकारों को हिंदी के साथ- साथ सभी अन्य भारतीय भाषाओं के विकास एवं प्रचार-प्रसार पर बल दिया जाना चाहिए, ताकि अंग्रेजी जैसी किसी भी विदेशी भाषा के अतिक्रमण को सीमित रखा जा सके एवं भारतीय सांस्कृतिक धरोहर और सभ्यता चिरंतन अक्षुण्य बनी रहे !