राष्ट्रीय समसामयिकी 1(29-Nov-2022)
हिमालयी याक
(Himalayan Yak)

Posted on November 29th, 2022 | Create PDF File

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भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standard Authority of India- FSSAI) ने हिमालयी याक को 'खाद्य पशु' के रूप में मंज़ूरी दे दी है।

 

इस कदम से पारंपरिक दूध और मांँस उद्योग का हिस्सा बनाकर उच्च तुंगता वाले गोजातीय/बोवाइन पशुओं की आबादी में गिरावट को रोकने में मदद मिलने की उम्मीद है।

 

खाद्य पशु वे हैं जिन्हें मनुष्यों द्वारा पाला जाता है और खाद्य उत्पादन या उपभोग के लिये उपयोग किया जाता है।

 

हिमालयी याक :

 

याक बोवाइन (Bovini) जनजाति से संबंधित हैं, जिसमें बाइसन, भैंस और मवेशी भी शामिल हैं। यह -40 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान को सहन कर सकता है।

 

इनके लंबे बाल उच्च उच्च तुंगता वाले क्षेत्रों में रहने हेतु इन्हें अनूकूल बनाते है, जो पर्दे की तरह अपने पक्षों से लटके रहते हैं। इनके बाल इतने लंबे होते हैं कि वे कभी-कभी ज़मीन को छूते हैं।

 

हिमालयी लोगों द्वारा याक को बहुत अधिक महत्त्व दिया जाता है। तिब्बती किंवदंती के अनुसार, तिब्बती बौद्ध धर्म के संस्थापक गुरु रिनपोछे ने सबसे पहले याक को पालतू बनाया था।

 

भारतीय हिमालयी क्षेत्र के उच्च तुंगता वाले स्थानों पर उन्हें खानाबदोशों की जीवन रेखा के रूप में भी जाना जाता है।

 

पर्यावास :

 

ये तिब्बती पठार और उससे सटे उच्च तुंगता वाले क्षेत्रों के लिये स्थानिक हैं।

 

14,000 फीट से अधिक ऊँचाई पर याक सबसे अधिक आरामदायक स्थिति में रहते हैं। भोजन की खोज में ये 20,000 फीट की ऊँचाई तक चले जाते हैं और प्रायः 12,000 फीट से नीचे नहीं उतरते हैं।

 

याक पालन करने वाले भारतीय राज्यों में अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू एवं कश्मीर शामिल हैं।

 

याक की देशव्यापी जनसंख्या प्रवृत्ति दर्शाती है कि इनकी आबादी बहुत तेज़ी से घट रही है। भारत में याक की कुल आबादी लगभग 58,000 है। इसमें वर्ष 2012 में आयोजित पिछली पशुधन गणना से लगभग 25% की गिरावट आई है।

 

इस भारी गिरावट को बोविड (मवेशी परिवार का एक स्तनपायी) से होने वाले कम पारिश्रमिक को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है, जो खानाबदोश प्रकृति वाले याक को पालने एवं उनकेे रखरखाव एवं हेतु हतोत्साहित करता है।

 

ऐसा मुख्य रूप से इसलिये है क्योंकि याक का दूध और मांँस पारंपरिक डेयरी तथा मांँस उद्योग का हिस्सा नहीं हैं एवं उनकी बिक्री स्थानीय उपभोक्ताओं तक ही सीमित है।

 

महत्त्व :

 

याक स्थानिक खानाबदोशों के लिये एक बहुआयामी सामाजिक-सांस्कृतिक-आर्थिक भूमिका निभाता है, जो इन्हें मुख्य रूप से हिमालय क्षेत्र के ऊंँचे इलाकों में अन्य कृषि गतिविधियों की कमी के कारण अपने पोषण और आजीविका सुरक्षा अर्जित करने में मदद करते हैं।

 

खतरा :

 

जलवायु परिवर्तन :

 

वर्ष के गर्म महीनों के दौरान उच्च ऊँचाई पर पर्यावरणीय तापमान में वृद्धि की प्रवृत्ति के परिणामस्वरूप याक में उष्मागत तनाव (Heat Stress) बढ़ जाता है जो इसकी शारीरिक प्रतिक्रियाओं को प्रभावित कर रहा है।

 

इनब्रीडिंग :

 

चूँकि युद्धों और संघर्षों के कारण सीमाएँ बंद हैं इसलिये मूल याक क्षेत्र से नए याक जर्मप्लाज्म (Germplasm) की उपलब्धता की कमी के कारण सीमाओं के बाहर पाए जाने वाले याक इनब्रीडिंग से प्रभावित हैं।

 

जंगली याक (Bos mutus) की संरक्षण स्थिति:

 

IUCN रेड लिस्ट : सुभेद्य

 

IUCN द्वारा याक की जंगली प्रजातियों को बोस म्यूटस  जबकि घरेलू प्रजातियों को बोस ग्रूनिएन्स के तहत वर्गीकृत करता है।

 

CITES : परिशिष्ट-I

 

भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 : अनुसूची- I