पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी समसामयिकी 3(27-June-2022)
2030 तक यूरोप में कीटनाशकों के उपयोग को आधा करना
(Halting pesticide use in Europe by 2030)

Posted on June 27th, 2022 | Create PDF File

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यूरोपीय संघ की कार्यकारी शाखा, यूरोपीय आयोग (EC) ने 2030 तक पूरे यूरोप में कीटनाशकों के उपयोग को आधा करने के लिये एक मसौदा कानून का प्रस्ताव रखा है। 

 

जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) ने अपने छठे आकलन में जलवायु परिवर्तन में  कमी लाने के लिये  अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र की तत्काल बहाली का आह्वान किया है। 

 

ग्लासगो जलवायु समझौते ने भी जलवायु शमन और अनुकूलन के लिये प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र के महत्त्व को रेखांकित किया था। 

 

यूरोपीय संघ, 2011 और 2020 के बीच यूरोपीय संघ की जैवविविधता रणनीति के अनुसार, जैवविविधता के क्षति को रोकने में सफल नहीं रहा है, जिसका स्वैच्छिक लक्ष्य 2020 तक कम-से-कम 15% निम्नीकृत पारिस्थितिक तंत्र को बहाल करना था। 

 

मसौदा कानून : 

 

मसौदा पारिस्थितिक तंत्र एक विस्तृत शृंखला में कई बाध्यकारी बहाली लक्ष्य और दायित्वों को निर्धारित करता है। इसमें 2030 तक यूरोपीय संघ की 20% भूमि और समुद्री क्षेत्र पर क्षेत्र-आधारित बहाली उपायों के लिये व्यापक उद्देश्य शामिल हैं। 

 

प्राकृतिक और अर्द्ध-प्राकृतिक जैवविविधता पारिस्थितिक तंत्र आर्द्रभूमि, जंगल, घास के मैदान, नदी, झीलें एवं यहांँ तक कि टीले का बड़े पैमाने पर सुधार और पुनः स्थापित किया जाएगा। 

 

यह अन्य मुद्दों के अलावा नदियों के मुक्त प्रवाह हेतु बड़े बांँधों को नष्ट करने का प्रयास करता है। 

 

2030 तक मधुमक्खियों, तितलियों, भौंरों, होवरफ्लाइज़ और अन्य परागणकों की आबादी में गिरावट को रोकने हेतु रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग एवं जोखिम को 2030 तक 50% कम कर दिया जाएगा। 

 

प्रस्ताव का उद्देश्य हरित शहरी स्थानों के नुकसान को कम करना है ताकि वर्ष 2030 तक हरित शहरी स्थानों का कोई नुकसान न हो। वास्तविक लक्ष्य वर्ष 2050 तक इन स्थानों में 5% की वृद्धि सुनिश्चित करना है। 

 

प्रस्ताव में कहा गया है कि सभी शहरों और कस्बों में कम-से-कम 10% वितान (canopy) कवर में वृद्धि होनी चाहिये। 

 

प्रस्ताव में वर्ष 2030 तक 25,000 किलोमीटर नदियों को एक मुक्त-प्रवाह वाली स्थिति में बहाल करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिये सतही जल की कनेक्टिविटी को रोकने या बाधित करने वाले अवरोधों की पहचान करके उन्हें दूर किया जाएगा। 

 

कीटनाशक : उपयोग और मुद्दे 

 

रासायनिक यौगिक जो कीटाणुओं को खत्म करने के लिये तैयार किये जाते हैं उन्हें कीटनाशक कहा जाता है। 

 

इनका उपयोग कृंतकों (कृंतकनाशक), कीटाणुओं (कीटनाशक), खरपतवार (शाकनाशी) और कवक (कवकनाशी) जैसे कीटों को मारने या भगाने के लिये किया जाता है। 

 

इनका उपयोग सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रबंधन में मच्छर जैसे रोग वाहकों को खत्म करने के लिये किया जाता है। 

 

फसलों को नुकसान पहुंँचाने वाले कीटों को खत्म करने के लिये इनका उपयोग कृषि में किया जाता है। 

 

मुद्दे : 

 

किसानों पर हानिकारक प्रभाव: विशेषज्ञों का मानना है कि पुराने निम्न-स्तर के कीटनाशक के संपर्क में आने से सिरदर्द, थकान, चक्कर आना, तनाव, क्रोध, अवसाद और ख़राब  स्मृति, पार्किंसंस रोग एवं अल्जाइमर रोग जैसे तंत्रिका तंत्र के लक्षणों की एक विस्तृत शृंखला है। 

 

उपभोक्ताओं पर हानिकारक प्रभाव: कीटनाशक पर्यावरण के माध्यम से और मिट्टी या जल प्रणालियों द्वारा खाद्य शृंखला तक पहुँचते हैं जिसके बाद उन्हें जलीय जानवरों या पौधों व अंततः मनुष्यों द्वारा खाया जाता है। इस प्रक्रिया को जैव-आवर्द्धन/बायोमैग्निफिकेशन (Biomagnification) कहा जाता है। 

 

कृषि पर हानिकारक प्रभाव: दशकों से कीटनाशकों के निरंतर उपयोग ने भारतीय कृषि क्षेत्र के वर्तमान पारिस्थितिक, आर्थिक और अस्तित्व के संकट को निरंतर बढ़ावा दिया है। 

 

नियामकता से संबंधित मुद्दे: हालांँकि कृषि उत्पादन राज्य  का विषय है, यह शिक्षा और अनुसंधान कीटनाशक अधिनियम, 1968 जो कि एक केंद्रीय अधिनियम है, के तहत शासित होता है, अत: इसलिये राज्य सरकारों की इसमें संशोधन करने में कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं है। 

 

इसका कारण यह है कि अनुमानित 104 कीटनाशक अभी भी भारत में उत्पादित/ उपयोग किये जाते हैं, जिन्हें विश्व के दो या दो से अधिक देशों में प्रतिबंधित कर दिया गया है। 

 

भारत में कीटनाशकों का विनियमन : 

 

1968 का कीटनाशक अधिनियम भारत में कीटनाशकों के पंजीकरण, निर्माण और बिक्री से संबंधित है। 

 

पिछले पाँच दशकों में इस अधिनियम को लागू करने के अनुभव ने कुछ कमियों को उजागर किया है। इस संदर्भ में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में कीटनाशक प्रबंधन विधेयक, 2020 को मंज़ूरी दी है। 

 

विधेयक कीटनाशकों के व्यापार को नियंत्रित करता है और कृषि रसायनों के उपयोग से होने वाले नुकसान के मामले में किसानों को मुआवज़ा देता है।