पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी समसामयिकी 3 (15-Apr-2021)^फुकुशिमा परमाणु संयंत्र^(Fukushima Nuclear Plant)
Posted on April 15th, 2021
जापान ने वर्ष 2011 की सुनामी में तबाह हुए फुकुशिमा परमाणु संयंत्र के एक मिलियन टन से अधिक दूषित जल को समुद्र में छोड़ने की योजना को मंज़ूरी दे दी है।
समुद्र में छोड़े जाने से पूर्व इस दूषित जल को यथासंभव उपचारित किया जाएगा, जिससे जल का रेडिएशन/विकिरण स्तर कम होगा और वह पीने योग्य बन सकेगा।
हालाँकि स्थानीय मत्स्यपालन उद्योग ने जापान सरकार के इस कदम का कड़ा विरोध किया है, क्योंकि इससे स्थानीय जैव-विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा तथा मत्स्यपालकों की आजीविका भी प्रभावित होगी।
ज्ञात हो कि फुकुशिमा पॉवर प्लांट के परमाणु रिएक्टर की इमारत वर्ष 2011 में आए भूकंप और सुनामी के बाद हुए हाइड्रोजन विस्फोट के कारण ध्वस्त हो गई थी।
इस भूकंप और सुनामी ने परमाणु संयंत्र के रिएक्टर की कूलिंग/शीतलन प्रणाली को प्रभावित किया था, जिससे वहाँ मौजूद तीन रिएक्टर पिघलने लगे थे।
पिघले हुए रिएक्टरों को ठंडा करने के लिये एक मिलियन टन से अधिक जल का उपयोग किया गया।
वर्तमान में, इसी रेडियोएक्टिव जल का उपचार करने के लिये एक जटिल फिल्ट्रेशन प्रक्रिया का उपयोग किया जा रहा है ताकि इसमें मौजूद अधिकांश रेडियोएक्टिव तत्त्व समाप्त हो जाएँ, किंतु इस प्रक्रिया के बाद भी कुछ तत्त्व पानी में मौजूद रहेंगे, जिसमें ट्राइटियम भी शामिल है।
ट्राइटियम की बहुत अधिक मात्रा मनुष्यों के लिये हानिकारक मानी जाती है।
पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी समसामयिकी 3 (15-Apr-2021)फुकुशिमा परमाणु संयंत्र(Fukushima Nuclear Plant)
जापान ने वर्ष 2011 की सुनामी में तबाह हुए फुकुशिमा परमाणु संयंत्र के एक मिलियन टन से अधिक दूषित जल को समुद्र में छोड़ने की योजना को मंज़ूरी दे दी है।
समुद्र में छोड़े जाने से पूर्व इस दूषित जल को यथासंभव उपचारित किया जाएगा, जिससे जल का रेडिएशन/विकिरण स्तर कम होगा और वह पीने योग्य बन सकेगा।
हालाँकि स्थानीय मत्स्यपालन उद्योग ने जापान सरकार के इस कदम का कड़ा विरोध किया है, क्योंकि इससे स्थानीय जैव-विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा तथा मत्स्यपालकों की आजीविका भी प्रभावित होगी।
ज्ञात हो कि फुकुशिमा पॉवर प्लांट के परमाणु रिएक्टर की इमारत वर्ष 2011 में आए भूकंप और सुनामी के बाद हुए हाइड्रोजन विस्फोट के कारण ध्वस्त हो गई थी।
इस भूकंप और सुनामी ने परमाणु संयंत्र के रिएक्टर की कूलिंग/शीतलन प्रणाली को प्रभावित किया था, जिससे वहाँ मौजूद तीन रिएक्टर पिघलने लगे थे।
पिघले हुए रिएक्टरों को ठंडा करने के लिये एक मिलियन टन से अधिक जल का उपयोग किया गया।
वर्तमान में, इसी रेडियोएक्टिव जल का उपचार करने के लिये एक जटिल फिल्ट्रेशन प्रक्रिया का उपयोग किया जा रहा है ताकि इसमें मौजूद अधिकांश रेडियोएक्टिव तत्त्व समाप्त हो जाएँ, किंतु इस प्रक्रिया के बाद भी कुछ तत्त्व पानी में मौजूद रहेंगे, जिसमें ट्राइटियम भी शामिल है।
ट्राइटियम की बहुत अधिक मात्रा मनुष्यों के लिये हानिकारक मानी जाती है।