नीतिशास्त्र केस स्टडी - 10 (Ethics Case Study - 10)
Posted on March 31st, 2020
Ethics Case Study - 10
प्रश्न - भारतीय पारंपरिक समाज में प्रायः अभिभावक अनुशासन और दमन में अन्तर नहीं कर पाते जिसका प्रभाव बच्चे के व्यक्तित्व पर पड़ता है। बच्चे को अभिव्यक्ति का अवसर नहीं मिलता जिससे आगे चलकर उनका व्यक्तित्व अपारदर्शी हो जाता है। इस समस्या के निवारण के लिए क्या किया जाना चाहिए ?
उत्तर - भारतीय समाज में अभी भी पारंपरिक मूल्य विद्यमान हैं। इन मूल्यों के मूल्यांतरण और नवीन मूल्यों की स्थापना की आवश्यकता है। भारत का मध्यवर्गीय एवं निम्न मध्यवर्गीय समाज अपनी दैनिक समस्याओं में इतना उलझा रहता है कि उसके पास बच्चों के लिए पर्याप्त समय नहीं होता और यदि समय मिलता है तो उनमें बच्चों को सुनने की न तो ऊर्जा ही बचती है और न ही धैर्य। ऐसी स्थिति में बच्चों को आत्म अभिव्यक्ति का अवसर नहीं मिलता, जिससे धीरे-धीरे उसका व्यक्तित्व संकुचित होता जाता है।
आगे चलकर बच्चे का व्यक्तित्व अपारदर्शी हो जाता है। उसमें पारदर्शिता का अभाव होता है। वह अपनी बातें को ठीक ढंग से रख नहीं पाता। पारदर्शिता एक आधुनिक मूल्य है। इसके अभाव में एक अच्छे प्रशासक की अपेक्षा नहीं की जा सकती।
अभिभावकों को अपने बच्चों को सुनने तथा उन्हें आत्म अभिव्यक्ति का अवसर देना चाहिए। बच्चों की उपेक्षा इसलिए नहीं होनी चाहिए क्योंकि वे पर्याप्त समझ नहीं रखते। उनमें समझ की कमी तो स्वाभाविक है लेकिन इस कमी को सतत् प्रयास से दूर करना ही तो अभिभावक का कर्तव्य है। प्रायः अभिभावक बच्चे की अन्य आवश्यकताओं का ध्यान रखते हैं, लेकिन उसका व्यक्तित्व जो उसके लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, उसके निर्माण के लिए अभिभावक समय नहीं निकालते। इस सन्दर्भ में मध्यवर्गीय समाज को सचेत होने की आवश्यकता है।
नीतिशास्त्र केस स्टडी - 10 (Ethics Case Study - 10)
प्रश्न - भारतीय पारंपरिक समाज में प्रायः अभिभावक अनुशासन और दमन में अन्तर नहीं कर पाते जिसका प्रभाव बच्चे के व्यक्तित्व पर पड़ता है। बच्चे को अभिव्यक्ति का अवसर नहीं मिलता जिससे आगे चलकर उनका व्यक्तित्व अपारदर्शी हो जाता है। इस समस्या के निवारण के लिए क्या किया जाना चाहिए ?
उत्तर - भारतीय समाज में अभी भी पारंपरिक मूल्य विद्यमान हैं। इन मूल्यों के मूल्यांतरण और नवीन मूल्यों की स्थापना की आवश्यकता है। भारत का मध्यवर्गीय एवं निम्न मध्यवर्गीय समाज अपनी दैनिक समस्याओं में इतना उलझा रहता है कि उसके पास बच्चों के लिए पर्याप्त समय नहीं होता और यदि समय मिलता है तो उनमें बच्चों को सुनने की न तो ऊर्जा ही बचती है और न ही धैर्य। ऐसी स्थिति में बच्चों को आत्म अभिव्यक्ति का अवसर नहीं मिलता, जिससे धीरे-धीरे उसका व्यक्तित्व संकुचित होता जाता है।
आगे चलकर बच्चे का व्यक्तित्व अपारदर्शी हो जाता है। उसमें पारदर्शिता का अभाव होता है। वह अपनी बातें को ठीक ढंग से रख नहीं पाता। पारदर्शिता एक आधुनिक मूल्य है। इसके अभाव में एक अच्छे प्रशासक की अपेक्षा नहीं की जा सकती।
अभिभावकों को अपने बच्चों को सुनने तथा उन्हें आत्म अभिव्यक्ति का अवसर देना चाहिए। बच्चों की उपेक्षा इसलिए नहीं होनी चाहिए क्योंकि वे पर्याप्त समझ नहीं रखते। उनमें समझ की कमी तो स्वाभाविक है लेकिन इस कमी को सतत् प्रयास से दूर करना ही तो अभिभावक का कर्तव्य है। प्रायः अभिभावक बच्चे की अन्य आवश्यकताओं का ध्यान रखते हैं, लेकिन उसका व्यक्तित्व जो उसके लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, उसके निर्माण के लिए अभिभावक समय नहीं निकालते। इस सन्दर्भ में मध्यवर्गीय समाज को सचेत होने की आवश्यकता है।