सशक्त नारी, समृध्द भारत (Empowered women,Prosperous India)

Posted on October 16th, 2018 | Create PDF File

hlhiuj

देश की कुल आबादी में महिलाओं की हिस्सेदारी करीब आधी है। पिछले कुछ वर्षों में हमने देखा है कि सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भूमिका में बढ़ोत्तरी हुई है। मसलन दफ्तरों के कामकाज अंतर्राष्ट्रीय खेल जगत, नौकरशाही राजनीति, अंतरराष्ट्रीय संस्थानों और अन्य जगहों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ रहा है। इस तरह का बदलाव सकारात्मक है। बदलाव की यह रफ्तार पहले से कहीं ज्यादा तेज है।

 

महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में हालिया घटनाक्रम काफी उत्साहजनक है। भारतीय वायुसेना में हाल ही में पहली महिला लड़ाकू पायलट की नियुक्ति की गई है। महिलाऐं अब सेना में युध्द से जुड़ी भूमिकाओं में भी जा सकती हैं। ओलंपिक, राष्ट्रमंडल खेल और क्रिकेट समेत कई अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों में भारतीय महिलाओं का शानदार प्रदर्शन देखने को मिला है। यहां तक की भारत में मंगलयान मिशन की सफल शुरुआत और 104 नेनौ उपग्रह को एक राकेट के जरिए कक्षा में स्थापित करने वाली टीम में महिला वैज्ञानिक भी शामिल हैं। ये महिलाऐं देश के लिए मिशाल की तरह हैं और बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ नारे को प्रतिबिंबित करती हैं।

 

भारत स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में समानता हासिल करने में सफल रहा है। यहां तक की चिकित्सा, कानून, सूचना प्रौद्योगिकी, प्रबंधन आदि तकनीकि और व्यवसायिक शिक्षा में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व तेजी से बढ़ रहा है। 1951 में महिलाओं की साक्षरता दर सिर्फ 9 फीसदी थी, जो 2011 में बढ़कर 65 फीसदी तक पहुंच गई । यह अपने आप में एक बड़ा बदलाव है।

 

भारत में कामकाजी जगहों पर हर चौथी कर्मी महिला है। काम जितना तकनीकी और जटिल होगा, हमें उसमें उतनी ही ज्यादा महिलाओं की संख्या देखने को मिल सकती है। एक-तिहाई सर्टिफाइड इंजीनियर महिलाऐं हैं। प्राथमिक स्तर पर  तीन चौथाई से भी ज्यादा स्वास्थ्य कर्मी महिलाऐं हैं। एक अनुमान के मुताबिक तकरीबन एक-तिहाई सभी चिकित्सा क्षेत्र में शोधकर्ता, बैंकिंग कर्मचारी, सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र के कर्मी, और चार्टर्ड एकाउंटेंट महिलाऐं हैं। उद्यमिता की भावना से लैस इस देश में तकरीबन 20 फीसदी महिला उद्यमी हैं। विभिन्न क्षेत्रों में उनकी हिस्सेदारी बढ़ने के कारण सार्वजनिक और निजी, दोनों जगहों पर महिलाओं की हैसियत लगातार बढ़ रही है।

 

राजनीति में भी आंकड़े पहले से कहीं ज्यादा उत्साहजनक हैं। पंचायतों में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों की संख्या तकरीबन 46 फीसदी है। ग्रामीण क्षेत्रों में 13 लाख से भी ज्यादा महिलाओं के सत्ता में होने के कारण देश के राजनीतिक परिदृश्य में जमीनी स्तर पर बदलाव आ रहा है। उदाहरण के तौर पर 1957 के चुनाव में सिर्फ 45 महिलाओं ने आम चुनाव लड़ा था। जबकि 2014 के आम चुनाव में 668 महिलाऐं चुनाव मैदान में थीं।

 

स्वास्थ्य मोर्चे पर भी महिलाओं ने बेहतरी हासिल की है और महिलाओं की औसत आयु जहां 1950-51 में 31.7 साल थी, वहीं 2016 में यह बढ़कर 70साल हो गई है। अब ज्यादा से ज्यादा महिलाऐं घर की बजाय अस्पताल में बच्चों को जन्म दे रही हैं। 2014-15 में इस संबंध में आंकड़ा बढ़कर रिकार्ड स्तर यानी 79 फीसदी पर पहुंच गया है। यह बच्चा और मां दोनों के स्वास्थ्य के लिहाज से बेहतर है। 2001-03 और 2011-13 के दशक के दौरान मातृत्व मृत्युदर घटकर आधी हो गई।

 

महिलाओं के वित्तीय समावेशन में भी जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुई है। विशेष तौर पर पिछले कुच सालों में ऐसा देखने को मिल रहा है। 2005-06 में बैंक या बचत खाता रखने वाली सिर्प 1 फीसदी महिलाऐं थी, जबकि 2015-16 में यह आंकड़ा बढ़कर 53 फीसदी हो गया है।

 

दुर्भाग्य से इन सकारात्मक आंकड़ों के बावजूद हमारे देश में महिलाओं को अब भी अपने जीवन और आजादी को लेकर गंभीर खतरों का सामना करना पड़ता है। हम रोजाना वीभत्स घटनाओं के बारे में सुनते हैं। साथ ही छोटी बच्चियों को अपने भाई –बहनों की देखभाल या उनकी शादी हो जाने कारण स्कूल छोड़ना पड़ता है। महिलाओं का अब भी अपने घर और खेतों में काम में काफी योगदान होता है। और पैसे के लिहाज से इनकी लागत भी नहीं आंकी जाती। कामकाज में तमाम योगदान के बावजूद उन्हें घरेलू या कामकाजी फैसलों में बराबरी का अधिकार नही दिया जाता है। अब भी यो उन सब के जीवन की तल्ख सच्चाइयां हैं। अगर हम भारतीय महिलाओं का सचमुच में सशक्तीकरण चाहते हैं तो भेदभाव और हिंसा के इस सिलसिले को महसूस करते हुए कदम उठाने की जरूरत है।

 

सरकार का मानना है कि देश की महिलाओं को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, वे हमारे पूरे समाज की समस्याऐं हैं। सरकार को लैंगिक समानता के मामले में आदर्श स्थिति सुनिश्चित करने के लिए हर संभव कदम उठाने को प्रतिबध्द होने की आवश्यकता है। महिलाओं के सश्कितिकरण के बिना देश में किसी भी तरह की प्रगति टिकाऊ नही हो सकती ।

 

सरकार ने महिलाओं को बराबरी का मौका मुहैया कराने और उनके लिए सुरक्षित माहौल तैयार करने के लिए काफी कदम उठाये हैं। शिक्षा और संगठित रोजगार के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए, उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए और सार्वजनिक तथा निजी भागीदारी को बढ़ावा देने  उन्हें सुरक्षित सार्वजनिक और निजी स्थान मुहैया कराने और उनके साथ परिवार के अंदर और बाहर समान व्यवहार सुनिश्चित करने के लिए कई कानून बनाए गए हैं और योजनाऐं भी लागू की गईं हैं।

 

समस्या की जड़ पर हमला करते हुए सरकार ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान शुरू किया है, जो देश के सभी जिलों में दृष्टिकोण जैसे जटिल मुद्दे से निपटने की कोशिश करता है। अगर लड़कियों और महिलाओं को लेकर लोगों की सोच नही बदलती है, तो सशक्तिकरण से जुड़ी अन्य पहल की दीर्घकालिक सफलता की संभावना नहीं होगी।

 

इस अभियान के अलावा 2015 में सुकन्या समृध्दि योजना की भी शुरुआत की गई। इस योजना के तहत लड़कियों के बैंक खातों में एक निश्चित राशि जमा करने पर ज्यादा ब्याज मिलता है। इस रकम को लड़की के 18 साल पूरा करने पर उसके द्वारा निकाला जा सकता है। जिसका इस्तेमाल अन्य निवेश या उच्चशिक्षा के क्षेत्र में किया जा सकता है। कुल 1.39 करोड़ खाते लड़कियों के लिए पहले से ही ये खोले जा चुके हैं और इन खातों में कुल 25979 करोड़ की रकम जमा हुई है।

 

महिलाओं के संपूर्ण सशक्तिकरण में आर्थिक सशक्तिकरण सबसे अहम है और वित्तीय समावेशन इसका अहम हिस्सा है। कुछ साल पहले तक बैंक खाता खोलना एक कठिन कार्य माना जाता था। हालांकि सुकन्या समृध्दि योजना और प्रधानमंत्री जनधन योजना के जरिए सरकार ने बैंकिंग सुविधाओं से वंचित लोगों को बैंकिंग सेवाओं से जोड़ा है। जनधन योजना के तहत 16.42 करोड़ महिलाओं के खाते खोले गए हैं। 2014 में कुल बचत खातों में महिलाओं की हिस्सेदारी 28 फीसदी थी जो 2017 में बढ़कर 40 फीसदी हो गई है। ये आंकड़े 40 बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंको के आधार पर बताये जा रहे हैं। महिलाओं के वित्तीय समावेशन के मामले में इसे अच्छी और तेज बढ़ोत्तरी कहा जा सकता है। दशकों से वित्तीय समावेशन का यह लक्ष्य काफी अहम रहा है।

 

प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत मौजूदा सरकार ने बिना किसी गारंटर या संपत्ति या इससे जुड़े कागजात के बिना छोटे उद्यमियों को कर्ज मुहैया कराया है। ऐसे 75 फीसदी कर्ज महिलाओं को दिए गए हैं। और इस योजना से 9.81 फीसदी महिला उद्यमियों को फायदा हुआ है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के तहत 47 लाख से भी ज्यादा स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा दिया गया है। और इसके अंतर्गत 2000 करोड़ से भी ज्यादा के फंड वितरित किए गए हैं। दरअसल पिछले वित्त वर्ष में महिला स्वयंसहायता समूहों को मंजूर किए गए कर्ज में 37 फीसदी की बढ़ोत्तरी देखने को मिली है।

 

कौशल विकास सरकार के महिला कार्यबल से जुड़ी संभावना को बढ़ाने में और कारगर है। प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत बड़ी संख्या में भारतीय युवाओं ने कौशल विकास का प्रशिक्षण लिया है। अब तक इस प्रशिक्षण से जुड़ा आधे प्रमाणपत्र महिलाओं को दिए गए हैं। कार्यबल में महिलाओं की मौजूदगी बनाए रखने के लिए मातृत्व लाभ कानून में संशोधन किया गया है। इसके तहत कामकाजी महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश से जुड़ी जरूरी छुट्टियों की अवधि को बढ़ाकर 26 हफ्ते कर दिया गया है। इससे कामकाजी महिलाओं का सशक्तिकरण होता है। क्योकि अब उन्हें बच्चे के जन्म के कारण वेतन या रोजगार खोने को लेकर डरने की जरूरत नही होती। इसके अलावा उनके पास प्रसव काल से उबरने और अपने बच्चे को स्तनपान कराने का पर्याप्त वक्त होगा।

 

असंगठित क्षेत्र को भी इस सुरक्षा के दायरे में लाने की खातिर गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के तहत नकद राशि भी मुहैया कराई जाती है। मेहनताने के नुकसान की आंशिक भरपाई के तौर पर इन माताओं को प्रोत्साहन के रूप में 6000 रुपये दिए जाते हैं, जिससे वे प्रसव के थोड़ा पहले और बाद में पर्याप्त आराम कर सकती हैं। इससे उनके पास अपने बच्चे को ढ़ंग से स्तनपान कराने का भी मौका होगा। इस योजना से पहले से ही 38 लाख से ज्यादा लाभार्थी जुड़ चुकी हैं।

 

महिलाओं का वरिष्ठ और बड़े पदों पर पहुँचना काबिल महिलाओं की योग्यता को पहचानने की दिशा में सकारात्मक कदम है। साथ ही ऐसे में संस्थानो को भी ज्यादा से ज्यादा महिलाओं के अनुकूल बनाया जा रहा है। सार्वजनिक और निजी कंपनियों में बड़े पदों पर और कंपनियों के बोर्ड में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा दिया जा रहा है। भारत में कंपनियों में फिलहाल 5 लाख से भी ज्यादा महिला निदेशक हैं, जो  देश में इस मामले में अबतक का रिकार्ड है।

 

ग्रामीण स्तर पर पंचायतों की महिलाऐं सदस्य अपने गांवों में सशक्तिकरण की अगुवाई कर रहीं हैं। महिलाओं की सशक्तिकरण की प्रक्रिया को सहयोग करने और वे अपने कार्यों को सही ढ़ंग से अंजाम दे सकें यह सुनिश्चित करने के लिए महिला और बाल विकास मंत्रालय ने पिछले साल 18000 महिला सदस्यों का प्रशिक्षण करवाया था। इस साल हम नेतृत्व और प्रबंधन क्षमता में बेहतरी के लिए 13000 और महिलाओं को प्रशिक्षण देंगे।

 

अगर हम कार्यबल में महिलाओं की सक्रिय सहभागिता चाहते हैं, तो हमें कामकाजी ठिकानों को महिला कर्मचारियों के अनुकूल बनाने की जरूरत है। इसके लिए हम कामकाजी जगहों पर महिलाओं के उत्पीड़न की रोकथाम, निषेध और निदान से संबंधित कानून 2013 को सख्ती से लागू कर रहे हैं। यह कामकाजी महिलाओं को ऐसी जगहों पर सुरक्षित माहौल मुहैया कराता है। और इसके दायरे में सभी उम्र की महिलाऐं  और पूर्ण कालिक और अंशकालिक, सार्वजनिक और निजी क्षेत्र, संगठित या असंगठित क्षेत्र से जुड़ी महिलाकर्मी ,छात्राऐं, प्रशिक्षु और दफ्तर जाने वाली महिलाऐं भी शामिल हैं। सरकार ने हर हाल में कमकाजी जगहों पर यौन उत्पीड़न के मामलों को दर्ज करने के लिए ऑनलाइन सिस्टम बनाया है।

 

अपने घर के भीतर भी महिलाऐं काफी काम करती हैं।जिसके लिए उन्हें किसी तरह का मेहनताना नही मिलता है। और अक्सर इन कामों को कोई मान्यता भी नही मिल पाती है। महिलाओं के सशक्तिकरण और उनके स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए उज्जवला योजना लाई गई है। इसके अंतर्गत गरीबी रेखा से नीचे गुजर बसर करने वाले परिवारों की महिलाओं को मुफ्त में गैस सिलेंडर दिया जाता है। ताकि गरीब महिलाऐं साफ सुथरे ईंधन से खाना बना सकें। जुलाई 2018 तक 5.08 करोड़ से भी ज्यादा ऐसे कनेक्शन जारी किए जा चुके हैं। इससे महिलाओं को लकड़ी से खाना बनाने की थकाऊ और खतरनाक प्रक्रिया से मुक्ति मिल जाती है। साथ उन्हें अन्य उत्पादक कार्यों के लिए समय भी मिल जाता है।

 

सशक्तिकरण का एक अहम पहलू सुरक्षा है। अगर महिलाऐं सुरक्षित महसूस करतीं हैं तभी वे आर्थिक और सार्वजनिक क्षेत्रों में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकेंगीं। इसके लिए मौजूदा सरकार ने 31 राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों में 181 महिला हेल्पलाइन केन्द्रों को मंजूरी दी है। और 206 वन स्टाप केन्द्र चल रहे हैं, जहां हिंसा की शिकार महिलाओं को आसानी से तुरंत मदद मिल सकती है। महिलाओं के लिए पुलिस बल में भी 33 फीसदी आरक्षण का नियम लागू किया जा रहा है।

 

मुश्किल में फंसी महिलाओं के लिए आपातकाल में मदद मुहैया कराने की खातिर सभी मोबाइल फोन में पैनिक बटन की सुविधा जल्द उपलब्ध होगी। देश के 8 प्रमुख शहरों को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाने और बलात्कार के मामले में फांरेंसिक जांच क्षमता को बेहतर करने के लिए निर्भया फंड का इस्तेमाल किया जा रहा है। इन तमाम उपायों और सुरक्षा से जुड़ी कई अन्य पहल के जरिए महिलाओ की सशक्तिकरण यात्रा को सहयोग मिलेगा।

 

हालंकि ये सुविधाऐं दूर-दराज के क्षेत्रों तक नही पहुचती हैं। जिसके समाधान के लिए महिला शक्ति केन्द्रो की शुरुआत की गई है। जिसके अंतर्गत 3 लाख छात्र स्वयंसेवी सरकारी योजनाओं और सेवाओं के साथ ग्रामीण स्तर पर सीधा उन महिलाओं तक पहुंच सकेंगे। सरकार का जोर है कि कोई भी महिला सशक्तिकरण के इस दौर से पीछे न छूट जाए। मौजूदा योजनाओं को उनकी पूरी संभावनाओं के साथ लागू किया जा रहा है। और इन सबमें पिछड़े इलाकों पर विशेष तौर पर ध्यान दिया जा रहा है, ताकि सबसे निचले पायदान पर मौजूद महिलाऐं अपनी स्थिति में जबरदस्त बेहतरी का अनुभव कर सकें। महिलाओं के सशक्तिकरण को लेकर आगे की राह इस मान्यता पर आधारित होगी कि सिर्फ महिलाओं के विकास की जगह, महिलाओं की अगुवाई में विकास होना चाहिए।

 

महिलाओं को सुरक्षित और अनुकूल माहौल की जरूरत होती है, जिससे सशक्तिकरण को बढ़ावा मिलता है। उन्हें डर के बिना जीने में सक्षम होना चाहिए, ताकि वे अपनी संभावना की तलाश कर सकें और कृत्रिम बाधाऐं उनकी राह में आड़े नही आएं। इसके साथ हमें सकारात्मक नीतियों को आगे बढ़ाने की जरूरत है, जिससे महिलाओं को बाकियों के साथ एक समान स्तर पर लाया जा सके। भारतीय महिलाओं को अगर सही अवसर मिले, तो उनमें असीम संभावनाऐं हैं।

 

भारत अपने जनसांख्यकीय लाभ का फायदा उठाने की ओर देख रहा है। ऐसे में सशक्त महिलाओं की भूमिका काफी अहम हो जाती है। शिक्षा और सार्थक रोजगार के जरिए हम सार्वजनिक जीवन में ज्यादा से ज्यादा महिलाओं की सक्रिय भूमिका और राष्ट्र निर्माण में उनके योगदान  की उम्मीद रखते हैं।