कन्या भ्रूण हत्या और चयनित गर्भपात रोकने हेतु प्रयास (Efforts to Prevent Female foeticide and Selective abortion)

Posted on March 24th, 2020 | Create PDF File

कन्या भ्रूण हत्या और चयनित गर्भपात रोकने हेतु प्रयास (Efforts to Prevent Female foeticide and Selective abortion)-

 

भ्रूण हत्या की रोकथाम और उस पर नियंत्रण पाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्तर पर सर्वप्रथम वर्ष 1971 में पहल की गई। सरकार द्वारा वर्ष 1971 में 'मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट' पारित किया गया। इसमें
प्रावधान किया गया कि यदि गर्भस्थ शिशु के बारे में यह पता चला कि वह असामान्य है और परिवार नियोजन के साधनों के उपयोग के बावजूद गर्भ ठहर गया है तो ऐसी स्थिति में गर्भपात कराना गैर कानूनी नहीं होगा बशर्ते कि यह सारी प्रक्रियाएँ 20 सप्ताह के भीतर हो जाएँ। इसके बाद बालिका भ्रूण हत्या पर नियंत्रण के उद्देश्य से पहली बार 1988 में महाराष्ट्र सरकार द्वारा लिंग निर्धारण परीक्षण निषेध अधिनियम पास किया गया। देश में शिशु लिंग निर्धारण से जुड़ी अल्ट्रासाउंड मशीनों के प्रकाश में आने तथा गर्भस्थ शिशु के लिंग जानने से संबंधित कोई कानून न होने के कारण इन मशीनों का खुलकर दुरुपयोग होने लगा। इसे ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार द्वारा प्रसव पूर्व परीक्षण तकनीक (विनियम एवं दुरुपयोग निवारण) अधिनियम, 1994 बनाया गया। इसे 2003 में संशोधित कर गर्भधारण पूर्व और प्रसूति पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 [The Pre-conception and Pre-natal Diagnostic Technique (Prohibition of Sex Selection) Act 1994 (PC & PNDT Act)]  कहा गया। संशोधन के पश्चात्‌ इस अधिनियम में निम्नलिखित मुख्य तत्वों को शामिल किया गया है-

 

* गर्भधारण पूर्व लिंग चयन तकनीकों को इस अधिनियम के अंतर्गत लाया गया है ताकि लगातार गिरते शिशु लिंगानुपात को रोका जा सके।

 

* स्पष्ट रूप से अल्ट्रासाउण्ड मशीनों के प्रयोग को इस अधिनियम के अधीन कर दिया गया है ताकि वे भ्रूण की लिंग की जाँच एवं पहचान उजागर न कर सके और बालिका भ्रूण हत्या को रोका जा सके।

 

* अधिनियम के कार्यान्वयन पर निगरानी के लिए केंद्रीय निगरानी बोर्ड (Central Supervisory Board) के गठन का प्रावधान किया गया है।

 

* राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में अधिनियम के कार्यान्वयन की समीक्षा हेतु राज्य स्तरीय निगरानी बोर्ड (State Level Supervisory Board) के गठन का प्रावधान किया गय है।

 

* राज्यों में इस अधिनियम के बेहतर कार्यान्वयन एवं निगरानी के लिए एक बहुसदस्यीय उपयुक्त प्राधिकरण (Multi Member State Appropriate Authority) का गठन किया गया है।

 

* अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन को रोकने के लिए दण्ड के प्रावधानों को सख्त बनाया गया है।

 

* मशीनों, यंत्रों एवं रिकॉर्डों की खोज, जब्ती एवं सील करने के संबंध में उपयुक्त प्राधिकरण को एक सिविल न्यायालय की शक्तियाँ प्रदान की गई है।

 

* अल्ट्रासाउण्ड मशीनों की बिक्री को विनियमित किया गया है।

 

* इस अधिनियम के तहत लिंग जाँच एवं चयन तकनीकों के किसी भी माध्यम से प्रचार को रोकने का प्रावधान किया गया है। इस प्रावधान का उल्लंघन करने वाले को तीन वर्ष तक का कारावास एवं दस इज़ार रुपए तक के जुमने की सजा दी जा सकती है।

 

* इस अधिनियम का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों को प्रथम अपराध की दशा में तीन वर्ष तक का कारावास तथा पचास हज़ार रुपए तक का जुर्माना और अपराध की पुनरावृत्ति होने पर पाँच वर्ष का कारावास तथा एक लाख रुपए तक का जुर्माना किया जा सकता है। जबकि अल्ट्रासाउण्ड मशीन माल्रिकों एवं चिकित्सकों द्वारा इस अधिनियम का उल्लंघन करने पर प्रथम अपराध की दशा में तीन वर्ष का कारावास एवं दस हज़ार रुपए का जुर्माना तथा अपराध की पुनरावृत्ति होने पर पाँच वर्ष का कारावास और पचास हज़ार रुपए का जुर्माना लगाया जा सकता है।

 

क्षेत्रीय नवोन्मेष परिषद (Sectoral Innovation Council)-

 

गिरते बाल लिंगानुपात के विभिन्‍न कारणों को व्यापक तरीके से समझने के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने क्षेत्रीय नवोन्मेष परिषद का गठन किया है। यह परिषद लिंगानुपात को सुधारने के लिए उपयुक्त नीति सुझाएगी।