दहेज प्रथा लेख द्वारा शुभम श्रीवास्तव (Dowry System Article by Shubham Srivastav)
Posted on April 6th, 2020
हमारा यह समाज अनेक रीती-रिवाजों एवं संस्कृतियों से मिलकर बनता है। समाज के कुछ रीती रिवाज हमें एक अच्छी दिशा प्रदान करते हैं वहीं कुछ रूढ़ीवादी विचारधाराओं की वजह से अनेक समस्याएं उत्पन्न होती हैं। जिसमें वर्तमान समय में एक प्रमुख समस्या है दहेज प्रथा। यह वर्तमान समय में एक भयावह रूप ले चुका है। इस प्रथा को लेकर कुछ लोगों का मानना है कि यह उपहार लेने का एक तरीका है। वही मेरा मत यह है कि दहेज प्रथा एक भीख मांगने का सामाजिक तरीका है, जिसमें एक पिता अपनी बेटी के विवाह में वर पक्ष की तरफ से दबाव द्वारा मांगे गए धन एवं उनकी मांगों को पूरा करता है। इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिए समाज के हर वर्ग को आगे आने की आवश्यकता है।
विश्व के अनेक देशों के लोग अपने धन को संचित करते हैं अपने आने वाले भविष्य के लिए अपने व्यापार आदि के लिए, परंतु भारत में यह स्थिति बिल्कुल विपरीत है क्योंकि यहां आम जनमानस अपने भविष्य की चिंता न करके अपनी बेटी के दहेज के लिए सारा धन इकट्ठा करता है। कहीं-कहीं स्थिति इतनी भयावह है कि एक पिता को दहेज के लिए साहूकार से सूद पर धन लेना पड़ जाता है जिसका कर्ज़ वह जिंदगी भर चुकाता है। यही वजह है कि भ्रूण हत्या (भूतकाल में) एवं बेटे की इच्छा जैसी स्थितियां विद्यमान है।
मेरा अपना निजी मत यह है कि अपनी बेटियों को शिक्षा अवश्य दें जिससे वह अपने पैरों पर खड़ी हो सके । क्योंकि शिक्षा एक ऐसा हथियार है जिससे बहुत सी गंभीर मुश्किलें स्वत: हल हो जाती है। एवं युवा पीढ़ी को भी आगे आना होगा की वह दहेज ना लेकर समाज में अच्छी मिसाल पेश करें। सरकार को भी ऐसे लोगों को और प्रोत्शाहन देने की आवश्यकता है।
दहेज प्रथा भी एक तरह का आतंकवाद है जिसमें एक बेगुनाह बाप की चीखें बारातियों के शोर में कहीं खो सी जाती हैं। हम युवा पीढ़ियों को दहेज प्रथा को समाप्त करके एक स्वच्छ एवं सुंदर समाज का निर्माण करना होगा जिसमें बेटियां बोझ नहीं स्वाभिमान नजर आएंगी।
शुभम् श्रीवास्तव ।।
दहेज प्रथा लेख द्वारा शुभम श्रीवास्तव (Dowry System Article by Shubham Srivastav)
हमारा यह समाज अनेक रीती-रिवाजों एवं संस्कृतियों से मिलकर बनता है। समाज के कुछ रीती रिवाज हमें एक अच्छी दिशा प्रदान करते हैं वहीं कुछ रूढ़ीवादी विचारधाराओं की वजह से अनेक समस्याएं उत्पन्न होती हैं। जिसमें वर्तमान समय में एक प्रमुख समस्या है दहेज प्रथा। यह वर्तमान समय में एक भयावह रूप ले चुका है। इस प्रथा को लेकर कुछ लोगों का मानना है कि यह उपहार लेने का एक तरीका है। वही मेरा मत यह है कि दहेज प्रथा एक भीख मांगने का सामाजिक तरीका है, जिसमें एक पिता अपनी बेटी के विवाह में वर पक्ष की तरफ से दबाव द्वारा मांगे गए धन एवं उनकी मांगों को पूरा करता है। इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिए समाज के हर वर्ग को आगे आने की आवश्यकता है।
विश्व के अनेक देशों के लोग अपने धन को संचित करते हैं अपने आने वाले भविष्य के लिए अपने व्यापार आदि के लिए, परंतु भारत में यह स्थिति बिल्कुल विपरीत है क्योंकि यहां आम जनमानस अपने भविष्य की चिंता न करके अपनी बेटी के दहेज के लिए सारा धन इकट्ठा करता है। कहीं-कहीं स्थिति इतनी भयावह है कि एक पिता को दहेज के लिए साहूकार से सूद पर धन लेना पड़ जाता है जिसका कर्ज़ वह जिंदगी भर चुकाता है। यही वजह है कि भ्रूण हत्या (भूतकाल में) एवं बेटे की इच्छा जैसी स्थितियां विद्यमान है।
मेरा अपना निजी मत यह है कि अपनी बेटियों को शिक्षा अवश्य दें जिससे वह अपने पैरों पर खड़ी हो सके । क्योंकि शिक्षा एक ऐसा हथियार है जिससे बहुत सी गंभीर मुश्किलें स्वत: हल हो जाती है। एवं युवा पीढ़ी को भी आगे आना होगा की वह दहेज ना लेकर समाज में अच्छी मिसाल पेश करें। सरकार को भी ऐसे लोगों को और प्रोत्शाहन देने की आवश्यकता है।
दहेज प्रथा भी एक तरह का आतंकवाद है जिसमें एक बेगुनाह बाप की चीखें बारातियों के शोर में कहीं खो सी जाती हैं। हम युवा पीढ़ियों को दहेज प्रथा को समाप्त करके एक स्वच्छ एवं सुंदर समाज का निर्माण करना होगा जिसमें बेटियां बोझ नहीं स्वाभिमान नजर आएंगी।
शुभम् श्रीवास्तव ।।