पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी समसामयिकी 1 (3-May-2021)
जलवायु परिवर्तन के कारण पृथ्वी के अक्ष में विस्थापन
(Displacement in Earth's axis due to climate change)

Posted on May 3rd, 2021 | Create PDF File

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एक अध्ययन के अनुसार, वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण ग्लेशियरों के अत्यधिक मात्रा में पिघलने की वजह से, 1990 के दशक के बाद से, हमारे ग्रह का घूर्णन अक्ष (axis of rotation) सामान्य से अधिक गति कर रहा है।

 

यद्यपि इस परिवर्तन से दैनिक जीवन पर कोई विशेष प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है, फिर भी इससे दिन की लंबाई में कुछ मिलीसेकंड का बदलाव हो सकता है।

 

‘पृथ्वी का अक्ष’ :

पृथ्वी का घूर्णन अक्ष (axis of rotation) वह रेखा होती है, जिसके सहारे पृथ्वी, सूर्य की परिक्रमा करने के दौरान अपनी धुरी पर चक्कर काटती है। जिन स्थानों पर यह अक्ष ग्रह की सतह को प्रतिच्छेदित (intersects) करते हैं, भौगोलिक रूप से उत्तर और दक्षिणी ध्रुव होते हैं।

 

अक्ष की विस्थापन प्रक्रिया :

पृथ्वी की सतह पर ध्रुवों का स्थान नियत नहीं होता है, हालाँकि, पृथ्वी पर कुल द्रव्यमान के वितरण में होने वाले परिवर्तन के अनुसार, इसके अक्ष में विस्थापन होता है।

 

इस प्रकार, अक्ष के विस्थापन होने पर धुर्वों की अवस्थिति में परिवर्तन होता है, और इस परिवर्तन को “ध्रुवीय गति” (polar motion) कहा जाता है।

 

नासा के अनुसार, 20 वीं शताब्दी के आंकड़ों से पता चलता है कि पृथ्वी के चक्रण अक्ष (spin axis) में प्रति वर्ष लगभग 10 सेंटीमीटर का विस्थापन होता है। अर्थात, एक सदी में, धुर्वों की अवस्थिति में 10 मीटर से अधिक का परिवर्तन हो जाता है।

 

आम तौर पर, ध्रुवीय गति का कारण, जलमंडल, वायुमंडल, महासागरों या ठोस पृथ्वी में होने वाले परिवर्तन होते हैं।

 

नए अध्ययन के निष्कर्ष:

 

1990 के दशक से, जलवायु परिवर्तन के कारण अरबों टन हिमाच्छादित बर्फ, पिघल कर महासागरों में बह चुकी है। इस कारण, पृथ्वी के ध्रुवों का नई दिशाओं में विस्थापन हुआ है।

 

अध्ययन के अनुसार, 1990 के दशक से, जलमंडल (Hydrosphere) में होने वाले परिवर्तन से उत्तरी ध्रुव, एक नई दिशा में पूर्व की ओर स्थानांतरित हो चुका है।

 

वर्ष 1995 से 2020 तक, ध्रुवों के विस्थापन की औसत गति, वर्ष 1981 से 1995 तक की औसत गति से 17 गुना तीव्र थी।

 

इस परिवर्तन के पीछे नवीनतम कारक:

जलवायु परिवर्तन के कारण हिमनदों के तीव्रता से पिघलने तथा गैर-हिमनद क्षेत्रों में परिवर्तित होने, सिंचाई तथा अन्य मानवजनित गतिविधियों के लिए भूजल की अरक्षणीय अर्थात अंधाधुंध उपभोग।

 

पीने, उद्योगों या कृषि के लिए भूमि के अधः स्तर से हर साल लाखों टन पानी बाहर निकाला जाता है, और अंततः यह जल समुद्र में प्रवाहित हो जाता है। इस प्रकार, इससे ग्रह के द्रव्यमान का पुनर्वितरण होता है।