राजव्यवस्था समसामियिकी 1 (20-Sept-2020)
दिल्ली उच्च न्यायालय का निर्देश - गरीब छात्रों के लिये मुफ्त गैजेट और इंटरनेट
(Delhi High Court directive - free gadget and internet for poor students)

Posted on September 20th, 2020 | Create PDF File

hlhiuj

दिल्ली उच्च न्यायालय ने राजधानी में निजी और सरकारी विद्यालयों को निर्देश दिया कि वे ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेने के लिये गरीब छात्रों को मुफ्त में गैजेट और इंटरनेट पैकेज प्रदान करें।दिल्ली उच्च न्यायलय की खंडपीठ ने कहा कि यदि कोई विद्यालय शिक्षा के माध्यम के रूप में ऑनलाइन मोड का चयन करता है, तो उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) और अन्य वंचित समूह से संबंधित बच्चे भी इस नई व्यवस्था में शामिल हो सकें और इसका यथासंभव लाभ प्राप्त कर सकें। निर्णय के अनुसार, निजी गैर-मान्यता प्राप्त स्कूल शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम की धारा 12(2) के तहत सरकार से गैजेट और इंटरनेट पैकेज की खरीद के लिये उचित लागत की प्रतिपूर्ति (Reimbursement) का दावा कर सकते हैं। न्यायालय ने गरीब और वंचित छात्रों की पहचान करने और इंटरनेट तथा गैजेट्स की आपूर्ति की प्रक्रिया में तेज़ी लाने के लिये एक तीन-सदस्यीय समिति के गठन का भी आदेश दिया है।

 


इस निर्णय का मुख्य उद्देश्य कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण उत्पन्न हुए डिजिटल डिवाइड को कम करना है। यह निर्णय इस दृष्टि से भी काफी महत्त्वपूर्ण है कि मौजूदा महामारी के आर्थिक प्रभाव के कारण छोटी उम्र के बच्चों में संसाधनों की कमी की वजह से शिक्षा छोड़ने और विद्यालय न जाने की प्रवृत्ति बढ़ सकती है।इसलिये इस समस्या को जल्द-से-जल्द संबोधित करने की आवश्यक है, क्योंकि यदि ऐसा नहीं होता है, तो आर्थिक रूप से कमज़ोर और संवेदनशील वर्ग के बच्चों के सिखने की क्षमता काफी प्रभावित होगी।

 


संसाधनों की कमी के कारण एक कक्षा के विद्यार्थियों के बीच उत्पन्न हुए डिजिटल डिवाइड से न केवल विद्यार्थी एक-समान अवसर प्राप्त करने में विफल रहते हैं, बल्कि इससे विद्यार्थियों के बीच ही एक भेदभाव की स्थिति बन जाती है, जो कि शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 के प्रावधानों और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 तथा 21 का उल्लंघन होता है।

 

शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम के अनुसार, निजी और विशेष श्रेणी के विद्यालय कक्षा एक या पूर्व-प्राथमिक कक्षाओं में भर्ती होने वाले आर्थिक रूप से कमज़ोर और संवेदनशील वर्ग के बच्चों के लिये कम-से-कम 25 प्रतिशत सीटों का आवंटन करेंगे, और उन बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेंगे। इसके लिये उन विद्यालयों को सरकार द्वारा प्रतिपूर्ति दी जाएगी।भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 भारत के सभी नागरिकों के लिये कानून के समक्ष समानता और भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर कानूनों के समान संरक्षण का प्रावधान करता है।भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन और वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि प्राथमिक स्तर पर शिक्षा के अधिकार को 2002 के 86वें संविधान संशोधन द्वारा अनुच्छेद 21(A) के तहत मौलिक अधिकार बना दिया गया है।

 


संयुक्त राष्ट्र (United Nations) द्वारा जारी एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना वायरस (COVID-19) के आर्थिक परिणामों के प्रभावस्वरूप अगले वर्ष लगभग 24 मिलियन बच्चों पर स्कूल न लौट पाने का खतरा उत्पन्न हो गया है।महामारी के कारण विद्यालय समेत अन्य शिक्षण संस्थानों के बंद होने से विश्व की तकरीबन 94 प्रतिशत छात्र आबादी प्रभावित हुई है और इसका सबसे ज़्यादा प्रभाव निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों पर देखने को मिला है।दिल्ली के आर्थिक और सांख्यिकी निदेशालय (DES) द्वारा कार्यान्वित एक हालिया सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण में सामने आया है कि सर्वेक्षण में शामिल 20.05 लाख परिवारों में से 15.7 लाख के पास कंप्यूटर या लैपटॉप नहीं हैं।

 


दिल्ली उच्च न्यायालय का यह निर्णय राष्ट्रीय राजधानी में स्कूली विद्यार्थियों के बीच डिजिटल डिवाइड को कम करने में मदद करेगा, साथ ही यह देश के अन्य राज्यों को भी ऐसा निर्णय लेने के लिये प्रेरित करेगा।
कोरोना वायरस महामारी ने तेज़ गति से ऑनलाइन शिक्षा की ओर एक बदलाव की आवश्यकता को रेखांकित किया है, आवश्यक है कि सरकार द्वारा इस आवश्यकता को पहचाने और इस संबंध में आवश्यक बुनियादी ढाँचे के निर्माण का प्रयास किया जाए।