बालक-बालिका अनुपात की वर्तमान स्थिति (Current Status of Child Sex Ratio)
Posted on March 24th, 2020
बालक-बालिका अनुपात की वर्तमान स्थिति (Current Status of Child Sex Ratio):
वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार, देश में वर्ष 2001 के मुकाबले लिंगानुपात में वृद्धि दर्ज की गयी है जो 933 से बढ़कर वर्ष 2011 में 940 हो गई है। लेकिन विडंबना यह है कि वर्तमान में देश में 0-6 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों में लड़कियों की संख्या लड़कों की अपेक्षा वर्ष 2001 की जनगणना की तुलना में कम हो गई है। वर्ष 2011 में इस आयु वर्ग के प्रति एक इज़ार लड़कों पर लड़कियों की संख्या 944 पाई गई है। बच्चों में यौन अनुपात में यह गिरावट मुख्य रूप में पंजाब, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में दर्ज़ की गई है।
अत्यधिक कम शिशु लिंग अनुपात वाले राज्यों में हरियाणा (830), पंजाब (846), जम्मू-कश्मीर (859),दिल्ली (866), चंडीगढ़ (867), राजस्थान (883), महाराष्ट्र (883), उत्तराखंड (886), गुजरात (886), उत्तर प्रदेश (899), विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। सामान्यतया इन सभी राज्यों में लिंगानुपात भी राष्ट्रीय औसत से काफी कम है। इससे यह अनुमान लगाया जाना औचित्यपूर्ण है कि यहाँ बालिका भ्रूण हत्या का प्रचलन तुलनात्मक रूप से अधिक है।
इस सामाजिक बुराई का एक पक्ष यह भी है कि देश के धनी और मध्यम वर्ग में कन्या भ्रूण हत्या की प्रवृत्ति अधिक है और तुलनात्मक रूप से पिछड़े और आदिवासी इलाकों मं यह प्रवृत्ति कम है। देश का जिलेवार अध्ययन भी इस दिशा में आँखें खोलने वाला साबित हो सकता है। पंजाब और हरियाणा के अधिकतर जिले कन्या भ्रूण हत्या के कारण कुख्यात हो गए हैं। महाराष्ट्र की समृद्ध चीनी पट्टी में अनेक लड़कियों को कोख में ही मार दिया जाता है लेकिन गढ़चिरौली, नंददुरबार, बीड़ जैसे आदिवासी बहुत जिलों में यह प्रवत्ति न के बराबर है। गुजरात में स्त्री-पुरूष अनुपात चिंताजनक है। लेकिन दाहोद और मेहसाणा जैसे पिछड़े,आदिवासी बहुल इलाके में तस्वीर काफी बेहतर है।
बालक-बालिका अनुपात की वर्तमान स्थिति (Current Status of Child Sex Ratio)
बालक-बालिका अनुपात की वर्तमान स्थिति (Current Status of Child Sex Ratio):
वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार, देश में वर्ष 2001 के मुकाबले लिंगानुपात में वृद्धि दर्ज की गयी है जो 933 से बढ़कर वर्ष 2011 में 940 हो गई है। लेकिन विडंबना यह है कि वर्तमान में देश में 0-6 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों में लड़कियों की संख्या लड़कों की अपेक्षा वर्ष 2001 की जनगणना की तुलना में कम हो गई है। वर्ष 2011 में इस आयु वर्ग के प्रति एक इज़ार लड़कों पर लड़कियों की संख्या 944 पाई गई है। बच्चों में यौन अनुपात में यह गिरावट मुख्य रूप में पंजाब, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में दर्ज़ की गई है।
अत्यधिक कम शिशु लिंग अनुपात वाले राज्यों में हरियाणा (830), पंजाब (846), जम्मू-कश्मीर (859),दिल्ली (866), चंडीगढ़ (867), राजस्थान (883), महाराष्ट्र (883), उत्तराखंड (886), गुजरात (886), उत्तर प्रदेश (899), विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। सामान्यतया इन सभी राज्यों में लिंगानुपात भी राष्ट्रीय औसत से काफी कम है। इससे यह अनुमान लगाया जाना औचित्यपूर्ण है कि यहाँ बालिका भ्रूण हत्या का प्रचलन तुलनात्मक रूप से अधिक है।
इस सामाजिक बुराई का एक पक्ष यह भी है कि देश के धनी और मध्यम वर्ग में कन्या भ्रूण हत्या की प्रवृत्ति अधिक है और तुलनात्मक रूप से पिछड़े और आदिवासी इलाकों मं यह प्रवृत्ति कम है। देश का जिलेवार अध्ययन भी इस दिशा में आँखें खोलने वाला साबित हो सकता है। पंजाब और हरियाणा के अधिकतर जिले कन्या भ्रूण हत्या के कारण कुख्यात हो गए हैं। महाराष्ट्र की समृद्ध चीनी पट्टी में अनेक लड़कियों को कोख में ही मार दिया जाता है लेकिन गढ़चिरौली, नंददुरबार, बीड़ जैसे आदिवासी बहुत जिलों में यह प्रवत्ति न के बराबर है। गुजरात में स्त्री-पुरूष अनुपात चिंताजनक है। लेकिन दाहोद और मेहसाणा जैसे पिछड़े,आदिवासी बहुल इलाके में तस्वीर काफी बेहतर है।