पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी समसामयिकी 1 (18-October-2021)COP26 जलवायु सम्मेलन(COP26 Climate Conference)
Posted on October 18th, 2021 | Create PDF File
यूनाइटेड किंगडम की अध्यक्षता में 31 अक्टूबर से 12 नवंबर तक संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन ‘COP 26’ का आयोजन किया जाएगा।
यह ‘पक्षकारों का 26वां सम्मेलन’ होगा, इसीलिए इसे ‘COP26’ नाम दिया गया है।
‘COP26’ का आयोजन ‘ग्लासगो’ के स्कॉटिश इवेंट कैंपस में किया जाएगा।
‘पक्षकारों का सम्मेलन’ / ‘कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज’ :
‘पक्षकारों का सम्मेलन’ (Conference of Parties – COP), वर्ष 1994 में स्थापित ‘संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क अभिसमय’ (United Nations Framework Convention on Climate Change – UNFCCC) के अधीन कार्य करता है।
UNFCCC की स्थापना “वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता को स्थिर करने” की दिशा में कार्य करने के लिए की गई थी।
COP सदस्यों द्वारा वर्ष 1995 के बाद से हर साल बैठक का आयोजन किया जाता हैं। वर्ष 1995 में पहला ‘पक्षकारों का सम्मेलन’ (COP) बर्लिन में आयोजित किया गया था।
पहले ‘पक्षकारों के सम्मेलन’ (COP1) में सदस्य देशों के लिए जिम्मेदारियों की एक सूची तैयार की गयी, जिसमें शामिल हैं:
जलवायु परिवर्तन को कम करने के उपाय तैयार करना।
जलवायु परिवर्तन प्रभाव के लिए ‘अनुकूलन’ की तैयारी में सहयोग करना।
जलवायु परिवर्तन से संबंधित शिक्षा, प्रशिक्षण और जन जागरूकता को बढ़ावा देना।
UNFCCC के अनुसार, COP26 में चार लक्ष्यों पर कार्य किया जाएगा:
सदी के मध्य तक वैश्विक स्तर पर ‘नेट-जीरो’ उत्सर्जन को सुनिश्चित करना और 1.5 डिग्री के तापमान लक्ष्य को पहुँच के भीतर रखना।
समुदायों और प्राकृतिक आवासों की रक्षा के लिए सामंजस्य स्थापित करना।
वित्त जुटाना: पहले दो लक्ष्यों को पूरा करने के लिए, विकसित देशों द्वारा वर्ष 2020 तक प्रति वर्ष जलवायु वित्त में कम से कम $ 100bn जुटाने संबंधी अपने वादे को पूरा करना।
‘पेरिस नियम पुस्तिका को अंतिम रूप देना’: पेरिस समझौते को पूरा करने में सहायक, विस्तृत नियमों की एक सूची तैयार करने के लिए वैश्विक नेताओं द्वारा मिलकर कार्य करना।
भारत द्वारा अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए उपाय:
यह भारत के लिए अपने ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान’ (Nationally Determined Contribution- NDC) को अद्यतन करने का समय है। (NDC, राष्ट्रीय उत्सर्जन में कटौती के लिए प्रत्येक देश द्वारा किए गए विभिन्न प्रयासों का विवरण होता है)।
देश में विकास की गति तेज करने के लिए ‘सेक्टर दर सेक्टर’ योजनाएं बनाए जाने की आवश्यकता है। हमें विद्युत् और परिवहन क्षेत्र को कार्बन-मुक्त (डीकार्बोनाइज) करना होगा।
कोयला क्षेत्र को किस प्रकार प्रतिस्थापित किया जा सकता है? इसके लिए युद्धस्तर पर प्रयास किए जाने चाहिए। भारत के लिए यह घोषणा करने का समय आ गया है कि मौजूदा इकाईयों के अलावा अन्य कोयला-चालित विद्युत् संयंत्रों का निर्माण नहीं किया जाएगा। भारत को अपने जलवायु परिवर्तन संबंधी कानूनी और संस्थागत ढांचे में भी तेजी लाने की जरूरत है।