पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी समसामयिकी 1 (19-Apr-2021)^कैरेबियाई ज्वालामुखी से उत्सर्जित सल्फर डाइऑक्साइड के भारत पहुचने की पुष्टि^(Confirmation of Sulfur Dioxide emitted from Caribbean volcano reaching India)
Posted on April 19th, 2021
हाल ही में, विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization– WMO) ने पुष्टि की है, कि कैरिबियन क्षेत्र में हुए एक ज्वालामुखी विस्फोट (ला सौफ्रिएरे वल्कैनो- La Soufriere volcano) से उत्सर्जित होने वाली सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), 16 अप्रैल 2021 को भारतीय वायुमंडल में पहुँच चुकी है, जिससे देश के उत्तरी भागों में प्रदूषण-स्तर बढ़ने तथा अम्लीय वर्षा (acid rain) की आशंका तीव्र हो गई है।
वैज्ञानिकों को, पृथ्वी के वायुमंडल की दूसरी परत, ‘समताप मंडल’ में भी ‘सल्फेट के ऐरोसॉल कणों’ (सल्फ्यूरिक एसिड के पूर्ववर्ती कण) के पहुँचने संबंधी साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। संभवतः इसी वजह से ये कण भारत तक पहुंचे हैं और इनके दक्षिण पूर्व एशिया के वायुमंडल तक पहुंचने की संभावना है।
प्रभाव :
‘समताप मंडल’ में ज्वालामुखीय अंत:क्षेपण का सबसे महत्वपूर्ण जलवायु प्रभाव, सल्फर डाइऑक्साइड का सल्फ्यूरिक एसिड में रूपांतरण होने से होता है। सल्फ्यूरिक एसिड ‘समताप मंडल’ में तेजी से संघनित होकर सल्फेट के ऐरोसॉल (aerosols) कणों का निर्माण करता है।
ऐरोसॉल कण, सौर विकरण के वापस अंतरिक्ष में होने वाले परावर्तन को तीव्र कर देते है, जिससे पृथ्वी के निचले वायुमंडल अर्थात ‘क्षोभमंडल’ (Troposphere) सामान्य से ठंडा हो जाता है।
सल्फर डाइऑक्साइड- स्रोत:
वातावरण में उपस्थित ‘सल्फर डाइऑक्साइड’ (SO2) का सबसे बड़ा स्रोत विद्युत् संयंत्रों और अन्य औद्योगिक कारखानों द्वारा जीवाश्म ईंधन का दहन होता है।
‘सल्फर डाइऑक्साइड’ उत्सर्जन के छोटे स्रोतों में, अयस्कों से धातु निष्कर्षण जैसी औद्योगिक प्रक्रियाएँ; प्राकृतिक स्रोत जैसे ज्वालामुखी; और रेल-इंजन, जहाज और अन्य वाहन तथा अधिक मात्रा में सल्फर युक्त ईधन का दहन करने वाले भारी उपकरण आदि शामिल होते हैं।
पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी समसामयिकी 1 (19-Apr-2021)कैरेबियाई ज्वालामुखी से उत्सर्जित सल्फर डाइऑक्साइड के भारत पहुचने की पुष्टि(Confirmation of Sulfur Dioxide emitted from Caribbean volcano reaching India)
हाल ही में, विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization– WMO) ने पुष्टि की है, कि कैरिबियन क्षेत्र में हुए एक ज्वालामुखी विस्फोट (ला सौफ्रिएरे वल्कैनो- La Soufriere volcano) से उत्सर्जित होने वाली सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), 16 अप्रैल 2021 को भारतीय वायुमंडल में पहुँच चुकी है, जिससे देश के उत्तरी भागों में प्रदूषण-स्तर बढ़ने तथा अम्लीय वर्षा (acid rain) की आशंका तीव्र हो गई है।
वैज्ञानिकों को, पृथ्वी के वायुमंडल की दूसरी परत, ‘समताप मंडल’ में भी ‘सल्फेट के ऐरोसॉल कणों’ (सल्फ्यूरिक एसिड के पूर्ववर्ती कण) के पहुँचने संबंधी साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। संभवतः इसी वजह से ये कण भारत तक पहुंचे हैं और इनके दक्षिण पूर्व एशिया के वायुमंडल तक पहुंचने की संभावना है।
प्रभाव :
‘समताप मंडल’ में ज्वालामुखीय अंत:क्षेपण का सबसे महत्वपूर्ण जलवायु प्रभाव, सल्फर डाइऑक्साइड का सल्फ्यूरिक एसिड में रूपांतरण होने से होता है। सल्फ्यूरिक एसिड ‘समताप मंडल’ में तेजी से संघनित होकर सल्फेट के ऐरोसॉल (aerosols) कणों का निर्माण करता है।
ऐरोसॉल कण, सौर विकरण के वापस अंतरिक्ष में होने वाले परावर्तन को तीव्र कर देते है, जिससे पृथ्वी के निचले वायुमंडल अर्थात ‘क्षोभमंडल’ (Troposphere) सामान्य से ठंडा हो जाता है।
सल्फर डाइऑक्साइड- स्रोत:
वातावरण में उपस्थित ‘सल्फर डाइऑक्साइड’ (SO2) का सबसे बड़ा स्रोत विद्युत् संयंत्रों और अन्य औद्योगिक कारखानों द्वारा जीवाश्म ईंधन का दहन होता है।
‘सल्फर डाइऑक्साइड’ उत्सर्जन के छोटे स्रोतों में, अयस्कों से धातु निष्कर्षण जैसी औद्योगिक प्रक्रियाएँ; प्राकृतिक स्रोत जैसे ज्वालामुखी; और रेल-इंजन, जहाज और अन्य वाहन तथा अधिक मात्रा में सल्फर युक्त ईधन का दहन करने वाले भारी उपकरण आदि शामिल होते हैं।