स्वास्थ्य समसामयिकी 1 (24-June-2021)
चिल्ड्रन एंड डिजिटल डंपसाइट्स
(Children and Digital Dumpsites)

Posted on June 24th, 2021 | Create PDF File

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हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चिल्ड्रन एंड डिजिटल डंपसाइट्स (Children and Digital Dumpsites) शीर्षक से प्रकाशित नई रिपोर्ट में कहा है कि बेकार इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों या ई-कचरे के कारण अनौपचारिक प्रसंस्करण में काम करने वाले बच्चे जोखिम में हैं ।

 

-वेस्ट (-कचरा:

  • ई-वेस्ट से आशय पुराने, उम्र पूरी कर चुके, फेंक दिए गए बिजली चालित तमाम उपकरणों से हैं। इसमें कम्प्यूटर, फोन, फ्रिज, एसी से लेकर टीवी, बल्ब, खिलौने और इलेक्ट्रिक टूथब्रश जैसे गैजेट तक शामिल हैं।

 

चिल्ड्रन एंड डिजिटल डंपसाइट्स (Children and Digital Dumpsites) रिपोर्ट के प्रमुख बिन्दु :

निम्न और मध्यम आय वाले देशों में ई-कचरा डंपिंग स्थलों पर काम करने वाले 1.8 करोड़ बच्चे और किशोर (इनमें से कुछ की उम्र तो पांच वर्ष से भी कम है) अनौपचारिक रूप से औद्योगिक क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं, जिससे इनके स्वास्थ्य को गंभीर खतरा है।

 

रिपोर्ट के अनुसार, 1.29 करोड़ (12.9 मिलियन ) महिलाएं कचरे से जुड़े अनौपचारिक क्षेत्र में काम करती हैं, जो उन्हें संभावित रूप से जहरीले इलेक्ट्रॉनिक कचरे के संपर्क में लाता है। इससे न केवल उन महिलाओं के स्वास्थ्य पर साथ ही उनके अजन्में बच्चों को भी खतरे में डाल रहा है।

 

अकसर बच्चों के माता-पिता और उनका ध्यान रखने वाले उन्हें इलेक्ट्रॉनिक कचरे की रीसाइक्लिंग के काम में लगा देते हैं क्योंकि उनके छोटे-छोटे हाथ बड़ों की तुलना में कहीं ज्यादा कुशल होते हैं।

 

वहीं अन्य बच्चे जो इस इलेक्ट्रॉनिक कचरे के आसपास रहते हैं या स्कूल जाते हुए इनके संपर्क में आते हैं या फिर रीसाइक्लिंग सेंटर के आस-पास खेलते हैं; उनके इस कचरे में मौजूद जहरीले केमिकल्स के संपर्क में आने का खतरा सबसे ज्यादा होता है। इस कचरे में मौजूद सीसा और पारा उन बच्चों की बौद्धिक क्षमता को नुकसान पहुंचा सकता है।

 

-वेस्ट का स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव :

ई-कचरे के संपर्क में आने वाले बच्चे छोटे आकार, अपने कम विकसित अंगों और विकास की तीव्र दर के कारण उनमें मौजूद जहरीले केमिकल्स के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं। वे अपने आकार की तुलना में अधिक प्रदूषकों को अवशोषित करते हैं। उनका शरीर विषाक्त पदार्थों को सहन करने और शरीर से बाहर निकालने में वयस्कों की तुलना में कम सक्षम होता है।

 

ई- वेस्ट (e-waste) में 1,000 से अधिक कीमती धातुएँ और अन्य पदार्थ जैसे सोना, तांबा, सीसा, पारा, कैडमियम, क्रोमियम, पॉलीब्रोमिनेटेड बाइफिनाइल और पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन आदि शामिल होते हैं। इनका प्रसंस्करण कम आय वाले देशों में किया जाता है, जिनके पास उचित सुरक्षा विनियमन नहीं है जिससे यह प्रक्रिया और भी खतरनाक बन जाती है।

 

वहीं एक गर्भवती महिला के इस कचरे के संपर्क में आने से न केवल उसके बल्कि उसके अजन्मे बच्चे के स्वास्थ्य और विकास पर भी खतरा होता है। इसके कारण बच्चे का समय से पहले जन्म, मृत्यु और उसके विकास पर असर पड़ सकता है। साथ ही यह उसके मानसिक विकास, बौद्धिक क्षमता और बोलने की क्षमता को भी प्रभावित कर सकता है।

 

साथ ही यह बच्चों की सांस लेने की क्षमता और फेफड़ों के कार्यप्रणाली पर भी असर डालता है। यह बच्चों के डीएनए को नुकसान पहुंचा सकता है। इससे थायरॉयड सम्बन्धी विकार और बाद में उनमें कैंसर और हृदय रोग के खतरे को बढ़ा सकता है।

 

भारत में -कचरे का उत्पादन एवं प्रबंधन :

वर्ष 2018 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal - NGT) को बताया था कि भारत में ई-कचरे का 95 प्रतिशत पुनर्नवीनीकरण अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा किया जाता है और अधिकांश स्क्रैप डीलर इसे अवैज्ञानिक तरीके से जलाकर या एसिड में घोलकर इसका निपटान करते हैं ।

 

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा एनजीटी के साथ साझा किए गए डेटा से पता चलता है कि भारत में वर्ष 2019-20 में 10 लाख टन से अधिक ई-कचरा उत्पन्न हुआ था। वर्ष 2017-18 के मुकाबले वर्ष 2019-20 में ई-कचरे में 7 लाख टन की बढ़ोतरी हुई थी। इसके विपरीत 2017-18 से ई-कचरे के विघटन और पुनर्चक्रण की क्षमता में बढ़ोतरी नहीं हुई है।

 

ई-वेस्ट प्रबंधन और परिचालन नियम (2011) के बदले केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने ई-वेस्ट प्रबंधन नियम (2016) को अधिसूचित किया था। 2018 में इसमें उत्पादकों से जुड़े कुछ मुद्दों को लेकर संशोधन भी किए गए थे। विषैले और खतरनाक पदार्थों के अपशिष्ट (कचरे) के निपटान के लक्ष्य निर्धारित करने के अलावा, विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व (एक्सटेन्डेड प्रोड्युसर रिस्पॉन्सिबिलिटी- ईपीआर) योजना भी बनाई गई है।