हाल ही में बौद्ध भिक्षुओं (Buddhist) के एक समूह ने तवांग ज़िले में जलविद्युत परियोजनाओं (Hydropower Project) पर अरुणाचल प्रदेश सरकार का विरोध किया है।प्रस्तावित परियोजनाएँ न केवल लुप्तप्राय ब्लैक नेक्ड क्रेन (Black Necked Crane) के घोंसलों के मैदानों को प्रभावित करेंगी, बल्कि इस क्षेत्र के कई पवित्र बौद्ध तीर्थ स्थलों को भी खतरे में डाल देंगी।
ब्लैक नेक्ड क्रेन के विषय में-
नर और मादा दोनों का ही आकार लगभग समान होता है लेकिन नर, मादा से थोड़ा बड़ा होता है।गर्दन, सिर, उड़ने वाले पंख और पूँछ पूरी तरह से काले होते हैं तथा शरीर का रंग हल्का भूरा/सफेद होता है। एक विशिष्ट लाल रंग का मुकुट सिर को सुशोभित करता है।बच्चों के सिर और गर्दन भूरे रंग के होते हैं तथा पंख वयस्क की तुलना में थोड़े छोटे होते हैं।
इनको दलाई लामा के एक अवतार (Tsangyang Gyatso) के रूप में मोनपास (Monpas- अरुणाचल प्रदेश के प्रमुख संस्कृति वाला बौद्ध समूह) समुदाय द्वारा परम पूजनीय माना जाता है।मोनपास पश्चिम कामेंग और तवांग ज़िलों में निवास करने वाले बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय का समूह है।
तिब्बती पठार, सिचुआन (Sichuan- चीन) और पूर्वी लद्दाख (भारत) के उच्च ऊँचाई वाले आर्द्रभूमि क्षेत्र इस प्रजाति के मुख्य प्रजनन स्थल हैं। ये सर्दियों की अवधि कम ऊँचाई वाले क्षेत्रों में बिताते हैं।ये भूटान और अरुणाचल प्रदेश में केवल सर्दियों के दौरान आते हैं।
इन्हें अरुणाचल प्रदेश के तीन क्षेत्रों में देखा जा सकता है-
* पश्चिम कामेंग ज़िले में संगति घाटी (Sangti Valley)।
* तवांग ज़िले में ज़मीथांग (Zemithang)।
* तवांग ज़िले में चुग घाटी (Chug Valley)।
संकट:
* जंगली कुत्ते इनके अंडों और चूजों को अत्यधिक नुकसान पहुँचाते हैं।
* आर्द्रभूमि पर मानव दबाव (विकास परियोजनाओं) के कारण निवास स्थान का नुकसान।
* सीमित चरागाहों की वजह से आर्द्रभूमियों पर चराई का दबाव बढ़ रहा है।
वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर-इंडिया (WWF-India), जम्मू और कश्मीर के वन्यजीव संरक्षण विभाग के सहयोग से लद्दाख क्षेत्र में ब्लैक नेक्ड क्रेन के साथ-साथ उच्च ऊँचाई वाले आर्द्रभूमि के संरक्षण की दिशा में काम कर रहा है।डब्ल्यूडब्ल्यूएफ अरुणाचल प्रदेश में शीतकालीन ब्लैक-नेक्ड क्रेन की कम जनसंख्या के संरक्षण के लिये काम कर रहा है।
हाल ही में बौद्ध भिक्षुओं (Buddhist) के एक समूह ने तवांग ज़िले में जलविद्युत परियोजनाओं (Hydropower Project) पर अरुणाचल प्रदेश सरकार का विरोध किया है।प्रस्तावित परियोजनाएँ न केवल लुप्तप्राय ब्लैक नेक्ड क्रेन (Black Necked Crane) के घोंसलों के मैदानों को प्रभावित करेंगी, बल्कि इस क्षेत्र के कई पवित्र बौद्ध तीर्थ स्थलों को भी खतरे में डाल देंगी।
ब्लैक नेक्ड क्रेन के विषय में-
नर और मादा दोनों का ही आकार लगभग समान होता है लेकिन नर, मादा से थोड़ा बड़ा होता है।गर्दन, सिर, उड़ने वाले पंख और पूँछ पूरी तरह से काले होते हैं तथा शरीर का रंग हल्का भूरा/सफेद होता है। एक विशिष्ट लाल रंग का मुकुट सिर को सुशोभित करता है।बच्चों के सिर और गर्दन भूरे रंग के होते हैं तथा पंख वयस्क की तुलना में थोड़े छोटे होते हैं।
इनको दलाई लामा के एक अवतार (Tsangyang Gyatso) के रूप में मोनपास (Monpas- अरुणाचल प्रदेश के प्रमुख संस्कृति वाला बौद्ध समूह) समुदाय द्वारा परम पूजनीय माना जाता है।मोनपास पश्चिम कामेंग और तवांग ज़िलों में निवास करने वाले बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय का समूह है।
तिब्बती पठार, सिचुआन (Sichuan- चीन) और पूर्वी लद्दाख (भारत) के उच्च ऊँचाई वाले आर्द्रभूमि क्षेत्र इस प्रजाति के मुख्य प्रजनन स्थल हैं। ये सर्दियों की अवधि कम ऊँचाई वाले क्षेत्रों में बिताते हैं।ये भूटान और अरुणाचल प्रदेश में केवल सर्दियों के दौरान आते हैं।
इन्हें अरुणाचल प्रदेश के तीन क्षेत्रों में देखा जा सकता है-
* पश्चिम कामेंग ज़िले में संगति घाटी (Sangti Valley)।
* तवांग ज़िले में ज़मीथांग (Zemithang)।
* तवांग ज़िले में चुग घाटी (Chug Valley)।
संकट:
* जंगली कुत्ते इनके अंडों और चूजों को अत्यधिक नुकसान पहुँचाते हैं।
* आर्द्रभूमि पर मानव दबाव (विकास परियोजनाओं) के कारण निवास स्थान का नुकसान।
* सीमित चरागाहों की वजह से आर्द्रभूमियों पर चराई का दबाव बढ़ रहा है।
वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर-इंडिया (WWF-India), जम्मू और कश्मीर के वन्यजीव संरक्षण विभाग के सहयोग से लद्दाख क्षेत्र में ब्लैक नेक्ड क्रेन के साथ-साथ उच्च ऊँचाई वाले आर्द्रभूमि के संरक्षण की दिशा में काम कर रहा है।डब्ल्यूडब्ल्यूएफ अरुणाचल प्रदेश में शीतकालीन ब्लैक-नेक्ड क्रेन की कम जनसंख्या के संरक्षण के लिये काम कर रहा है।