अंतर्राष्ट्रीय समसामयिकी 2 (31-July-2021)आर्कटिक विज्ञान मंत्रिस्तरीय बैठक(Arctic Science Ministerial Meeting)
Posted on August 1st, 2021 | Create PDF File
हाल ही में, सरकार द्वारा संसद में भारत की ‘तीसरे आर्कटिक विज्ञान मंत्रिस्तरीय’ (3rd Arctic Science Ministerial – ASM3) में भागीदारी के बारे में जानकारी दी गई।
ASM3 का आयोजन आइसलैंड और जापान द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था, और यह एशिया में आयोजित की जाने वाली पहली आर्कटिक विज्ञान मंत्रिस्तरीय बैठक थी।
‘तीसरे आर्कटिक विज्ञान मंत्रिस्तरीय’ के लिए इस वर्ष की थीम: ‘संवहनीय आर्कटिक के लिए जानकारी’ (KnowledgeforaSustainableArctic) है।
पृष्ठभूमि:
‘आर्कटिक विज्ञान मंत्रिस्तरीय’ (Arctic Science Ministerial – ASM) की पहली दो बैठकों ASM1 और ASM2 का आयोजन क्रमश: वर्ष 2016 में अमेरिका और वर्ष 2018 में जर्मनी में किया गया था।
इस बैठक का आयोजन, आर्कटिक क्षेत्र के बारे में सामूहिक समझ बढ़ाने तथा इसकी निरंतर निगरानी पर जोर देते हुए विभिन्न हितधारकों को इस दिशा में अवसर प्रदान करने हेतु किया गया है।
आर्कटिक क्षेत्र को बनाए रखने में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और सहयोग की आवश्यकता:
आर्कटिक क्षेत्र मे बढ़ती गर्मी और इसकी बर्फ पिघलना वैश्विक चिंता का विषय हैं क्योंकि ये जलवायु, समुद्र के स्तर को विनियमित करने और जैव विविधता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं।
इसके अलावा, आर्कटिक और हिंद महासागर के करीब होने के प्रमाण हैं (जो भारतीय मॉनसून को नियंत्रित करता है)।
इसलिए, भौतिक प्रक्रियाओं की समझ में सुधार करना और भारतीय गर्मियों के मॉनसून पर आर्कटिक बर्फ के पिघलने के प्रभाव को कम करना बहुत महत्वपूर्ण है।
भारत और आर्कटिक:
भारत, आर्कटिक से पेरिस में स्वालबार्ड संधि (SvalbardTreaty) पर वर्ष 1920 में हस्ताक्षर करने के बाद से जुड़ा हुआ है।
जुलाई 2008 से, भारत का आर्कटिक में नॉर्वे के स्वालबार्ड क्षेत्र के न्यालेसुंड (NyAlesund, SvalbardArea) में हिमाद्री नामक एक स्थायी अनुसंधान स्टेशन है।
भारत द्वारा, जुलाई 2014 से कांग्सजोर्डन फ़ियोर्ड (Kongsfjordenfjord) में इंडआर्क (IndARC) नामक एक बहु-संवेदक यथास्थानिक वेधशाला (multi-sensormooredobservatory) भी तैनात की गई है।
भारत के आर्कटिक क्षेत्र में अन्य योगदान:
भारत ने आर्कटिक में, यथास्थान (in-situ) और रिमोट सेंसिंग, दोनों अवलोकन प्रणालियों में योगदान करने की अपनी योजना साझा की।
भारत ऊपरी महासागर कारकों और समुद्री मौसम संबंधी मापदंडों की लंबी अवधि की निगरानी के लिए आर्कटिक में खुले समुद्र में नौबंध की तैनाती करेगा।
यूएसए के सहयोग से ‘नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार’ (NISER) उपग्रह मिशन का शुभारंभ हो रहा है। NISER का उद्देश्य उन्नत रडार इमेजिंग का उपयोग करके भूमि की सतह के परिवर्तनों के कारण और परिणामों का वैश्विक रूप से मापन करना है।
सतत आर्कटिक निगरानी नेटवर्क (SustainedArcticObservationalNetwork– SAON) में भारत का योगदान जारी रहेगा।