राजव्यवस्था समसामयिकी 1 (22-Apr-2021)उच्च न्यायालयों में ‘तदर्थ न्यायाधीशों’ की नियुक्ति(Appointment of 'Ad-hoc Judges' in High Courts)
Posted on April 22nd, 2021 | Create PDF File
उच्च न्यायालयों में लगभग 57 लाख लंबित मामलों को “कार्य-सूची में अचानक वृद्धि” (docket explosion) बताते हुए उच्चतम न्यायालय ने, पिछले शेष कार्य (बैकलॉग) को समाप्त करने हेतु अनुच्छेद 224A का प्रयोग करते हुए, दो से तीन साल की अवधि के लिए, ‘तदर्थ न्यायाधीशों’ के रूप में उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर दिया है।
साथ ही इन नियुक्तियों को विनियमित करने के लिए दिशानिर्देश भी जारी कर दिए गए है।
‘अनुच्छेद 224A’ के अंतर्गत तहत संविधान में तदर्थ न्यायाधीशों (ad-hoc judges) की नियुक्ति संबंधी प्रावधान किये गए हैं।
इस अनुच्छेद का उपयोग कभी कभार ही किया जाता है।
इसके अनुसार, “किसी राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश किसी भी समय, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से, उसी उच्च न्यायालय अथवा किसी अन्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य कर चुके किसी व्यक्ति से राज्य के उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में कार्य करने का अनुरोध कर सकता है”।
बड़ी मात्रा में मामलों के लंबित होने का कारण:
सरकार ही सबसे बड़ी वादी / मुकदमेबाज है।
कम बजटीय आवंटन: न्यायपालिका को आवंटित बजट, सकल घरेलू उत्पाद का 08% और 0.09% के बीच होता है।
कार्यस्थगन की मांग करने की परंपरा।
न्यायिक नियुक्तियों में देरी।