दहेज रोधी कानून (Anti Dowry Law)

Posted on March 24th, 2020 | Create PDF File

दहेज रोधी कानून (Anti Dowry Laws)-

 

दहेज निषेध अधिनियम, 1961 सम्पूर्ण भारत में लागू है। इसमें दहेज को निम्नलिखित तरीके से परिभाषित किया गया है-'ऐसी सम्पत्ति या मूल्यावान वस्तु जिसे शादी के दौरान या पहले, शादी से संबंधित पक्ष देते हैं या देने पर राजी होते हैं। यह लेन-देन वर-क्धू के माता-पिता या शादी से जुड़े अन्य संबंधित पक्षों के बीच हो सकता है।'

 

* कानूनी तौर पर उपहार देने पर तो मनाही नहीं है लेकिन दहेज पर प्रतिबंध है।

* कानूनी तौर पर वर को किए जाने वाले उपहार अत्यधिक कीमती नहीं होने चाहिए।

* कानून में 1983 एवं 1986 में दिए गए दो संशोधनों के बाद दहेज लेना एवं दहेज देना, दोनों को संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखा गया है। इससे न्यायालय को यह अधिकार मिल जाता है कि वह हत्या से संबंधित मामलों में पीड़ित पक्ष द्वारा रिपोर्ट नहीं कराए जाने की स्थिति में भी स्वयं संज्ञान लेकर या पुलिस द्वारा दिए गए सूचना को आधार बनाकर मामले की सुनवाई कर सके।

* दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के तहत ऐसे कृत्य के लिए कम से कम 5 वर्ष की सजा के साथ-साथ कम से कम 15000 रुपए या दह्ठेज के मूल्य के बराबर, इनमें से जो भी ज्यादा हो, जुर्माना किया जा सकता है।

* भारतीय दंड संहिता की धारा 304 (बी) दहेज हत्या से संबंधित है। इसे भारतीय दण्ड संहिता में 1986 में संशोधन के माध्यम से सम्मिलित किया गया है। इस कानून के अंतर्गत यह कहा गया है कि यदि  शादी के 7 साल के अन्दर किसी महिला की जलने, शारीरिक दुर्घटना या अन्य कारणों से मृत्यु हो जाती है और यह मालूम हो जाता है कि मृत्यु से पहले उसे दहेज के लिए पति या पति का परिवार प्रताड़ित करता था तो ऐसी स्थिति में इसे दहेज हत्या का मामला माना जाएगा। इसके अतिरिक्त भारतीय दण्ड संहिता में संशोधन कर इस बात का भी प्रावधान किया गया कि यदि शादी के 7 वर्ष के अंदर किसी महिला की अप्राकृतिक कारणों (Unnatural Causes) से मृत्यु होती है तो इसे आपराधिक मामला मानकर इसकी जाँच-पड़ताल की जाएगी ।

* भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498 (ए) भारतीय दण्ड संहिता में 1983 में एक संशोधन के माध्यम से सम्मिलित की गई है। इसके तहत यह प्रावधान किया गया है कि किसी महिला के पति या परिवार वालों के द्वारा उस पर क्रूरता बरती जाती है तो उन्हें 3 वर्ष तक की कारावास की सजा दी जा सकती है और जुर्माना भी किया जा सकता है। इसमें क्रूरता को इस प्रकार परिभाषित किया गया है-जानबूझकर की गई कोई भी ऐसी कार्रवाई जिससे महिला आत्म-हत्या करती है, गंभीर रूप से घायल होती है या उसके जीवन को खतरा पहुंचता हो।

 

* इसके अलावा घरेलू हिंसा अधिनियम में भी दहेज की मांग को शामिल किया गया है। इसमें प्रावधान है कि यदि गैर कानूनी दह्ठेज की मांग के लिए लड़की या उसके किसी रिश्तेदार को चोट, उत्पीड़न, हानि या उसे किसी तरह के खतरे में डाला जाता है तो उसे घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत दंडित किया जाएगा।

 

*सर्वोच्च न्यायालय ने 10 जून, 2012 को दिए अपने निर्णय में कहा है कि दह्ठेज इत्या जैसे मामलों में आजीवन कारावास से कम दण्ड नहीं दिया जाना चाहिए विशेषकर बैसे मामलों में जिनमें लड़की की हत्या
करने के लिए तरीके अपनाए गए हों।