विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी समसामियिकी 1 (7-Nov-2019)^अमेरिकी विश्वविद्यालय जेनेटिक्स के क्षेत्र में एम्स, कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज के साथ काम करेगा^(American University will work with AIIMS, Kasturba Medical College in the field of genetics)
Posted on November 8th, 2019
अमेरिका का एक शीर्ष विश्वविद्यालय दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) और मणिपाल (कर्नाटक) के कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज के साथ साझेदारी कर भारत में आनुवांशिक परीक्षण (जेनेटिक टेस्टिंग) के क्षेत्र को विस्तार देगा।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ की तरफ से पांच वर्षों में दिए जाने वाले 23 लाख डॉलर के अनुदान की मदद से मिशिगन विश्वविद्यालय और भारतीय आनुवांशिकीविद् उन आनुवांशिक परिवर्तनों की पहचान एवं पुष्टि करेंगे जो विकास संबंधी विकृतियों का कारण बनते हैं।
विश्वविद्यालय ने बुधवार को जारी एक मीडिया विज्ञप्ति में बताया कि भारत में विकास संबंधी विकारों से पीड़ित 10 में से सात बच्चों का आनुवांशिक परीक्षण नहीं किया जाता। साथ ही कहा कि इस अध्ययन से उम्मीद है कि आनुवांशिक परीक्षण तक ज्यादा पहुंच से, आनुवांशिक प्रकृति के विकास संबंधी विकारों से पीड़ित बच्चों के लिए आणविक दृष्टि से पुष्ट निदान मिल सकता है।
मिशिगन विश्वविद्यालय के मेडिकल स्कूल में मानव आनुवांशिकी की संयुक्त प्राध्यापक स्टेफनी बिएलस ने कहा, “सटीक आणविक निदान से दुर्लभ विकासात्मक विकृतियों से पीड़ित व्यक्तियों की देखरेख एवं उपचार में महत्त्वपूर्ण सुधार किया जा सकता है।”
उन्होंने कहा, “आनुवांशिक निदान के बिना, हो सकता है कि दुर्लभ विकारों से पीड़ित व्यक्तियों की देखभाल ठीक प्रकार से नहीं हो और उन्हें उचित इलाज नहीं मिल पाए।”
विश्वविद्यालय ने बताया कि बिएलस कर्नाटक के शहर मणिपाल और एम्स में अपने साझेदारों के साथ पिछले चार वर्षों से काम कर रही हैं।
विश्वविद्यालय ने कहा कि अनुसंधानकर्ता एक ऐसा डेटाबेस तैयार करना चाहते हैं जिसे अनुसंधान के मकसद से अन्य वैज्ञानिकों एवं संस्थानों के साथ साझा किया जा सके और भारत एवं अन्य देशों में आनुवांशिक विकारों के लिए दवाएं विकसित करने में योगदान दिया जा सके।
विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी समसामियिकी 1 (7-Nov-2019)अमेरिकी विश्वविद्यालय जेनेटिक्स के क्षेत्र में एम्स, कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज के साथ काम करेगा(American University will work with AIIMS, Kasturba Medical College in the field of genetics)
अमेरिका का एक शीर्ष विश्वविद्यालय दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) और मणिपाल (कर्नाटक) के कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज के साथ साझेदारी कर भारत में आनुवांशिक परीक्षण (जेनेटिक टेस्टिंग) के क्षेत्र को विस्तार देगा।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ की तरफ से पांच वर्षों में दिए जाने वाले 23 लाख डॉलर के अनुदान की मदद से मिशिगन विश्वविद्यालय और भारतीय आनुवांशिकीविद् उन आनुवांशिक परिवर्तनों की पहचान एवं पुष्टि करेंगे जो विकास संबंधी विकृतियों का कारण बनते हैं।
विश्वविद्यालय ने बुधवार को जारी एक मीडिया विज्ञप्ति में बताया कि भारत में विकास संबंधी विकारों से पीड़ित 10 में से सात बच्चों का आनुवांशिक परीक्षण नहीं किया जाता। साथ ही कहा कि इस अध्ययन से उम्मीद है कि आनुवांशिक परीक्षण तक ज्यादा पहुंच से, आनुवांशिक प्रकृति के विकास संबंधी विकारों से पीड़ित बच्चों के लिए आणविक दृष्टि से पुष्ट निदान मिल सकता है।
मिशिगन विश्वविद्यालय के मेडिकल स्कूल में मानव आनुवांशिकी की संयुक्त प्राध्यापक स्टेफनी बिएलस ने कहा, “सटीक आणविक निदान से दुर्लभ विकासात्मक विकृतियों से पीड़ित व्यक्तियों की देखरेख एवं उपचार में महत्त्वपूर्ण सुधार किया जा सकता है।”
उन्होंने कहा, “आनुवांशिक निदान के बिना, हो सकता है कि दुर्लभ विकारों से पीड़ित व्यक्तियों की देखभाल ठीक प्रकार से नहीं हो और उन्हें उचित इलाज नहीं मिल पाए।”
विश्वविद्यालय ने बताया कि बिएलस कर्नाटक के शहर मणिपाल और एम्स में अपने साझेदारों के साथ पिछले चार वर्षों से काम कर रही हैं।
विश्वविद्यालय ने कहा कि अनुसंधानकर्ता एक ऐसा डेटाबेस तैयार करना चाहते हैं जिसे अनुसंधान के मकसद से अन्य वैज्ञानिकों एवं संस्थानों के साथ साझा किया जा सके और भारत एवं अन्य देशों में आनुवांशिक विकारों के लिए दवाएं विकसित करने में योगदान दिया जा सके।