व्यक्ति विशेष समसामियिकी 1 (7-Aug-2020)
अबनींद्रनाथ टैगोर की 150वीं जयंती (150th Birth Anniversary of Abanindranath Tagore)

Posted on August 7th, 2020 | Create PDF File

hlhiuj

7 अगस्त, 2020 को अबनींद्रनाथ टैगोर की 150वीं जयंती के अवसर पर ‘नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट’ (National Galary of Modern Art-NGMA), नई दिल्ली एक वर्चुअल टूर का आयोजन करेगा जिसका शीर्षक ‘द ग्रेट मेस्ट्रो: अबनींद्रनाथ टैगोर’ (The Great Maestro: Abanindranath Tagore) है।यह वर्चुअल टूर NGMA के आरक्षित संग्रह से अबनींद्रनाथ टैगोर की प्रमुख कलाकृतियों में से 77 कलात्मक कार्यों को प्रस्तुत करेगा जो निम्नलिखित चार अलग-अलग विषयों की एक श्रृंखला में समूहीकृत होंगे।

 

रबींद्रनाथ टैगोर के भतीजे, अवनींद्र नाथ टैगोर, भारत में बंगाल स्कूल ऑफ आर्ट के सबसे प्रमुख कलाकारों में से एक थे। वह भारतीय कला में स्वदेशी मूल्यों के पहले प्रमुख समर्थक थे।अबनींद्रनाथ टैगोर को आधुनिक भारतीय कला के क्षेत्र में एक विलक्षण व्यक्ति माना जाता है। अबनींद्रनाथ ने कई विषयों को चित्रित किया किंतु ऐतिहासिक या साहित्यिक छंदों के साथ चित्र बनाने की ओर उनका झुकाव अधिक था।उन्होंने 'अरेबियन नाइट्स' (Arabian Nights) या 'कृष्ण लीला' (Krishna Leela) जैसे विषयों का भी चित्रण किया।

 


अबनींद्रनाथ टैगोर का जन्म 07 अगस्त, 1871 को ब्रिटिश भारत के कलकत्ता के जोरासांको (Jorasanko) में हुआ था।वर्ष 1890 में, अबनींद्रनाथ टैगोर ने ‘कलकत्ता स्कूल ऑफ आर्ट’ में भाग लिया जहाँ उन्होंने ओ. घिलार्डी (O. Ghilardi) से ‘पेस्टल’ और सी. पामर (C. Palmer) जैसे यूरोपीय चित्रकारों से ‘तेल चित्रकला’ का उपयोग करना सीखा।वर्ष 1905 में बंगाल विभाजन की घोषणा के बाद राष्ट्रीय आंदोलन के बढ़ते प्रभाव के वातावरण में अबनींद्रनाथ टैगोर ने वर्ष 1907 में अपने बड़े भाई गगनेंद्रनाथ के साथ मिलकर ‘इंडियन सोसाइटी ऑफ ओरिएंटल आर्ट’ (Indian Society of Oriental Art) की स्थापना की, जिसके द्वारा प्राच्य कला-मूल्यों का पुनर्जीवन एवं आधुनिक भारतीय कला में नई चेतना जागृत हुई।वह भारतीय कला में स्वदेशी मूल्यों के पहले प्रमुख प्रतिपादक भी थे। इन्ही स्वदेशी मूल्यों के आधार पर बंगाल में ‘स्कूल ऑफ आर्ट’ की स्थापना हुई थी जिससे ‘आधुनिक भारतीय चित्रकला का विकास’ हुआ।अबनींद्रनाथ टैगोर ने कला के पश्चिमी मॉडल के प्रभाव का मुकाबला करने के लिये मुगल और राजपूत चित्रकला शैलियों के आधुनिकीकरण की मांग की।अबनींद्रनाथ टैगोर का मानना ​​था कि पश्चिमी चित्रकला का चरित्र ‘भौतिकवादी’ है अतः आध्यात्मिक मूल्यों को पुनर्प्राप्त करने के लिये भारत को अपनी परंपराओं पर वापस लौटने की आवश्यकता है।अपने बाद के कार्यों में अबनींद्रनाथ टैगोर ने चीनी और जापानी सुलेख परंपराओं को अपनी चित्रकला शैली में एकीकृत करना शुरू किया था।अबनींद्रनाथ टैगोर विशेष रूप से बच्चों के लिये एक प्रसिद्ध लेखक के रूप में जाने जाते थे। उनकी पुस्तकों राजकाहिनी (Rajkahini), बूडो अंगला (Budo Angla), नलक (Nalak), और क्षीरेर पुतुल (Ksheerer Putul) का बच्चों के बंगाली भाषा साहित्य में प्रमुख स्थान है।5 दिसंबर, 1951 को कलकत्ता में अबनींद्रनाथ टैगोर की मृत्यु हो गई।